वरलक्ष्मी व्रतम आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में बहुत लोकप्रिय व्रत और पूजा दिवस है। इन राज्यों में, वरलक्ष्मी पूजा ज्यादातर विवाहित महिलाओं द्वारा पति और परिवार के अन्य सदस्यों की भलाई के लिए की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी वर-लक्ष्मी की पूजा करना अष्टलक्ष्मी यानी धन (श्री), पृथ्वी (भू), विद्या (सरस्वती), प्रेम (प्रीति), यश (कीर्ति), शांति (शांति), आनंद (तुष्टि) और शक्ति (पुष्टि) की आठ देवियों की पूजा के बराबर है।
ब्रह्म मुहूर्त: प्रात: 04:24 से 05:08 तक।
प्रातः सन्ध्या: प्रात: 04:46 से 05:51 तक।
अमृत काल: प्रात: 06:22 से 07:57 तक।
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:59 से 12:51 तक।
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:36 से 03:29 तक।
गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:59 से 07:21 तक।
वर लक्ष्मी पूजा विधि- Varalakshmi puja vidhi
- वरलक्ष्मी पूजा के लिए सबसे पहले यह सामग्री एकत्रित कर लें- हल्दी, मौली, दर्पण, कंघा, आम के पत्ते, पान के पत्ते, चंदन, हल्दी, कुमकुम, कलश, लाल वस्त्र, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा, दीप, धूप, दही, नारियल, माला, केले, पंचामृत, कपूर, दूध और जल आदि सभी चीजें इकट्ठा कर लें।
- प्रातःकाल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि करके शुद्ध वस्त्र धारर करें।
- फिर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- पूजा स्थान पर लकड़ी का पाट लगाएं और उस पर लाल रंग का साफ वस्त्र बिछाएं।
- अब उस पर माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें।
- सभी मूर्ति या चित्र को जल छिड़कर स्नान कराएं और फिर व्रत का संकल्प लें।
- अब मूर्ति या तस्वीर के दाहिने ओर चावल की ढेरी के उपर जल से भरा कलश रखें।
- कलश के चारों ओर चंदन लगाएं, मौली बांधें और कलश की पूजा करें।
- अब माता लक्ष्मी और गणेश के समक्ष धूप-दीप और घी का दीपक प्रज्वलित करें।
- तत्पश्चात पुष्प, दूर्वा, नारियल, चंदन, हल्दी, कुमकुम, माला, नैवेद्य अर्पित करते हुए षोडोषपचार पूजन करें।
- मां वरलक्ष्मी को सोलह श्रृंगार अर्पित करें और भोग लगाएं।
- इसके बाद माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें।
- अंत में माता की आरती करें।
- आरती करके सभी के बीच प्रसाद का वितरण कर दें।
- पूजा और आरती के बाद वरलक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करें।