कोजागरी पूर्णिमा पर करें लक्ष्मी पूजन

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प्रतिवर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा को रखा जाने वाला कोजागर व्रत करने वाले मनुष्य इस दिन विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखकर जितेन्द्रिय भाव से रहना जरूरी है। धनवान व्यक्ति ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाएँ। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करके बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें।

जब एक प्रहर यानी कि करीब 3घंटे बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें और उसके बाद भक्तिपूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें।

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तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा आचार्य को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जागकर मेरी पूजा में लीन रहें मनुष्य को मैं आज धन दूँगी। इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है।

इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं। शरद पूर्णिमा (कोजागर व्रत) के उपलक्ष्य में विभिन्न संस्थाओं द्वारा अनेक आयोजन जिसमें भजन संध्या, पूल बंगला व महाआरती, खीर वितरण का भी बहुत महत्व हैं।

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