गंगा दशहरा के अवसर पर्व पर मां गंगा में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन इस दिन स्नान करने से मनुष्य सभी दुःखों से मुक्ति पा जाता है। ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की दशमी यानी 11 जून को गंगा दशहरा मनाया जाएगा। इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी।
इस दिन स्वर्ग से गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है। गंगा दशहरा के दिन दान पुण्य का विशेष महत्व है।
इस दिन दान में सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल प्राप्त होता है।
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ज्योतिषियों के अनुसार गंगाजी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए अंशुमान के पुत्र दिलीप व दिलीप के पुत्र भागीरथ ने बड़ी तपस्या की। उसकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर माता गंगा ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि मैं तुम्हें वर देनी आई हूं। राजा भागीरथ ने बड़ी नम्रता से कहा कि आप मृत्युलोक में चलिए।
गंगा ने कहा कि जिस समय मैं पृथ्वीतल पर गिरूं, उस समय मेरे वेग को कोई रोकने वाला होना चाहिए। ऐसा न होने पर पृथ्वी को फोड़कर रसातल में चली जाऊंगी। भागीरथ ने अपनी तपस्या से रुद्रदेव को प्रसन्न किया तथा समस्त प्राणियों की आत्मा रुद्रदेव ने गंगाजी के वेग को अपनी जटाओं में धारण किया।
इन दिनों शिप्रा तट का नजारा बदला-बदला सा नजर आ रहा है। कहीं नगाड़ों की गूंज के बीच शिप्रा मैया की आरती तो कहीं गंगा दशहरा उत्सव में भक्ति का उजास छाया हुआ है। उत्तरवाहिनी शिप्रा मोक्षदायिनी कहलाती है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि जीवनदायिनी गंगा में स्नान, पुण्यसलिला नर्मदा के दर्शन और मोक्षदायिनी शिप्रा के स्मरणमात्र से मोक्ष मिल जाता है।
शिप्रा तट पर विशेष तिथियों के साथ हर दिन ही श्रद्घालुओं का तांता लगा रहता है। गंगा दशहरा उत्सव का उजास शिप्रा नदी के तट पर भी फैला है। श्रद्धालु शिप्रा की आरती में शामिल होने के साथ-साथ गर्मी के चलते घाटों पर भी बैठकर शीतलता और सुकून पा रहे हैं।