छठ पर्व : आस्था पर आडंबर का आवरण

- विनोद बंधु

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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के सेनापति राज ठाकरे भले ही बिहार समेत कई हिन्दीभाषी राज्यों में उत्साह और उमंग से मनाए जाने वाले छठ पर्व को नौटंकी करार देकर अपना राजनीतिक हित साधने के सपने बुनते रहे हैं और पूर्व रेलमंत्री और राजद सुप्रीमो लालूप्रसाद यादव इस पर्व में अपनी आस्था का महिमामंडन कर इस मौके पर आकर्षण बनने के ताने-बाने बुनते हैं लेकिन यह एक हकीकत है कि छठ पर्व में गुजरते समय के साथ लोगों की आस्था गहरी हो रही है।

इसका अनुमान पर्व के मौके पर नदियों, तालाबों के किनारे उमड़ने वाली भीड़ से लगाया जा सकता है । सूर्य की उपासना में लोगों की आस्था बढ़ने की एक वजह तो यह भी है कि वह सदृश्य हैं । बदलते परिवेश में छठ पर्व मनाने के तौर-तरीके बदले हैं और आस्था पर आडंबर का आवरण भी चढ़ा है।

बिहार में दीपावली की रात गुजरते ही जैसे जिंदगी ठहर जाती है। राजधानी पटना में भी सड़कों पर सन्नाटा और होटलों, रेस्तराओं समेत नुक्कड़ों की चाय-पान की दुकानों में लटकते ताले इसके मूक गवाह होते हैं। इस दौरान किसी वैसे राज्य से कोई यहाँ आ जाए, जहाँ छठ पर्व नहीं होता है तो उसे कुछ अजीब-सा अनुभव होगा। खाने-पीने की चीजें खरीदने के लिए भी उसे इधर-उधर भटकना पड़ सकता है। दफ्तरों में भी उपस्थिति कम हो जाती है। यहाँ तक कि पटना समेत राज्य के अन्य शहरों से प्रकाशित होने वाले अखबार भी दो दिन बंद रहते हैं ।

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दरअसल, यहाँ के लोग छठ पर्व की तैयारी में खुद को झोंक देते हैं। नदियों और तालाबों के घाटों की सफाई, वहाँ अपने-अपने परिवार के लिए जमीन छेंकने से लेकर उस हिस्से की सजावट के अलावा अपने-अपने घरों को भी लोग खूब सजाते-सँवारते और रोशन करते हैं, जिसे छठ पर्व की समझ नहीं है, वह भले ही इसे नौटंकी करार दे लेकिन है यह एक कठिन तपस्या का पर्व।

छठ व्रतियों की तो एक तरह से अग्नि परीक्षा ही होती है। चार दिनों तक न केवल उन्हें निर्जला व्रत रखना पड़ता है बल्कि उतनी ही साफ-सफाई का भी खयाल रखना पड़ता है। मान्यता यह भी है कि पार्वती ने बिहार के ही किसी हिस्से में गंगा के किनारे यह व्रत रखा था और सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा की थी।

बदलते परिवेश में छठ पर्व पर घर से लेकर घाट तक रोशन करने, सजाने-सँवारने और आतिशबाजी से इसे गुंजायमान करने का प्रचलन बढ़ा है। इसका एक चेहरा तो वह है जिसे व्रती आकार देते हैं। यानी कठोर निर्जला व्रत और पवित्रता का निर्वाह करके तो दूसरा चेहरा है चकाचौंध, जिसे गैरव्रती पूरा करते हैं। घाटों पर ढोल-नगाड़ों के बीच महिलाओं द्वारा छठ के गीत गाने की परंपरा तो पहले भी रही है, अब प्रख्यात गायकों को भी बुलाया जाता है।

खासकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घाट पर पूरी रात जागकर गुजारना होता है, ऐसे में रंगबिरंगी झालर और रोशनी से घाट और आस-पास की जगहों और वहाँ तक पहुँचने के रास्ते को रोशन किया जाता है। रात भर गीत-संगीत का दौर चलता है। डिस्को धुन पर युवकों की टोली थिरकती है। पूरी रात नदी, तालाब के आस-पास का इलाका गुलजार रहता है।

छठ से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी होने का असर है कि इसका जादू नेताओं के सिर चढ़कर बोलता है। पटना में तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद घाटों की सफाई में कोई चूक नहीं रहने देने के दिशा-निर्देश देते रहते हैं। बहरहाल, छठ का रंग गुजरते वक्त के साथ और निखरता ही जा रहा है और लोगों की आस्था भी उतनी ही गहरी होती जा रही है।

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