माघी पूर्णिमा

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माघ पूर्णिमा पर किए गए दान-धर्म और स्नान का विशेष महत्व होता है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर खुद भगवान विष्णु गंगा जल में निवास करते हैं।

माघ मास स्वयं भगवान विष्णु का स्वरूप बताया गया है। पूरे महीने स्नान-दान नहीं करने की स्थिति में केवल माघी पूर्णिमा के दिन तीर्थ में स्नान किया जाए तो संपूर्ण माघ मास के स्नान का पूर्ण फल मिलता है।

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माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। माघ में हेमंत ऋतु खत्म होने की ओर रहती है तथा इसके साथ ही शिशिर ऋतु की शुरुआत होती है।

ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े इसलिए प्रतिदिन सुबह स्नान करने से शरीर को मजबूती मिलती है। माघ का महीना शिव और शक्ति के साथ मधुमास का सम्मिश्रण भी है।

पंचांग के मुताबिक ग्यारहवें महीने यानी माघ में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व है। जब कर्क राशि में चंद्रमा और मकर राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तब माघ पूर्णिमा का योग बनता है। इस योग को पुण्य योग भी कहा जाता है। इस स्नान के करने से सूर्य और चंद्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है।

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