व्रत और उपवासों का दौर

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इन दिनों व्रत और उपवासों का दौर चल रहा है। उपवास के समय रोजमर्रा के कामकाज भी करना ही पड़ते हैं। ऐसे में ऊर्जा की कमी से कुछ अनियमितताएँ मसलन चक्कर आना, जी मचलाना, कमजोरी, कब्ज, एसीडिटी आदि होने लगती हैं। अगर पर्याप्त ध्यान न रखा जाए तो उपवास आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी सिद्ध हो सकते हैं।

थोड़ी-सी स्ट्रेचिंग भी आपका ऊर्जा स्तर ठीक बनाए रखने में बहुत ज्यादा मददगार साबित हो सकती है। इससे आपकी मांसपेशियाँ रिलेक्स होती हैं और रक्त का संचरण ज्यादा होता है जो आपको अतिरिक्त ऊर्जा भी देता है। लेकिन हाँ कसरत के साथ ज्यूस या फल लेना भी जरूरी है

कम से कम 10-12 गिलास पानी पिएँ। इससे डिहायड्रेशन नहीं होता। पानी में अगर आप नींबू का रस व शकर मिलाकर पी सकें तो ज्यादा बेहतर है, यह घोल आपको ज्यादा ऊर्जा भी देगा।

व्रतादि के दिन कोई भी भारी कार्य जैसे पूरे घर की साफ-सफाई, दरी-चद्दरें धोना, भारी सामान का स्थान परिवर्तन आदि तथा कढ़ाई-बुनाई जैसे बारीक कार्य भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि भारी कार्यों से भूख-प्यास के कारण बेचैनी और बारीक कार्यों से चक्कर आना, उल्टी होना, सिरदर्द करना आदि समस्याएँ हो सकती हैं।

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व्रत या उपवास का सही अर्थ है पाँच ज्ञानेन्द्रियों और पाँच कर्म इंद्रियों पर उचित नियंत्रण अर्थात्‌ बार-बार उपवास के बहाने शीतल पेय या उपवास में खाने योग्य पदार्थों को भी नहीं खाना चाहिए। आप चाहें तो उस दिन तला-गला, गरिष्ठ या मसालेदार न खाएँ बल्कि सात्विक भोजन कर लें।

व्रत या उपवास किसी के दबाव में, शर्म या सब स्त्रियों की देखा-देखी या फिर मुँह का स्वाद बदलने के लिए बिल्कुल मत कीजिए।

सप्ताह में कई बार तीन-चार दिन तक लगातार ऐसे पर्व आ जाते हैं जिनमें व्रत रखा जाता है। ऐसे में अपनी सुविधानुसार व्रत तय कर लें।

व्रत के दौरान फलाहार कर रहे हैं, तो दिन में एक ही बार बैठकर ढेर सारे फल खाने की बजाय पाँच-छः बार फल खाएँ। इससे रक्त में शर्करा का स्तर स्थिर रहेगा और शरीर को ऊर्जा मिलती रहेगी।

व्रत के दौरान शरीर में ऑक्सीजन अगर ठीक तरह से नहीं पहुँचे तो शरीर का ऊर्जा का स्तर आश्चर्यजनक रूप से कम हो जाता है। तीस सेकंड बैठकर गहरी साँस लें। तीन गिनने तक नाक से साँस लें और अंदर खींचे (कोशिश करें कि पेट तक साँस लें न कि केवल सीने तक) और छः गिनने तक धीरे-धीरे साँस छोड़ें।

सदैव याद रखिए कि ईश्वर भक्त की भावनाओं के भूखे होते हैं उन्हें कोई दिखावा या किसी भी आडंबरों से कोई लेना-देना नहीं होता। अतः जिस व्रत और उपवास से हमारा शरीर स्वस्थ मन और आत्मा को सुकून मिले वही व्रत सार्थक है।

यदि आप गर्भवती हैं तो निःसंदेह लगातार उपवास आपके और आपकी होने वाली संतान के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो सकते हैं। क्योंकि गर्भवती महिलाओं को पूर्णतः संतुलित आहार नियमित रूप से लेना आवश्यक होता है। उपवास आदि से आपके शरीर का तापमान और हार्मोंस अनियंत्रित हो सकते हैं।

यदि आप संयुक्त परिवार की सदस्य हैं, या कामकाजी (व्यावसायिक या नौकरीपेशा) हैं, तो आपको उतने ही व्रत या उपवास करना चाहिए जिससे आपको कार्य करने में असुविधा न हो। जैसे कुछ व्रतों में रातभर जागरण एवं सूर्योस्त पश्चात भोजन या चंद्र दर्शन के बाद भोजन करना होता है। कुछ व्रतादि में बिना नमक, पानी के रहना पड़ता है। ऐसे व्रतों से आपको कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा और शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा भी होगी।

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