प्राचीन ऐतिहासिक नगर बुरहानपुर से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित लोधीपुरा (शाहदरा) गाँव में वली-ए-कामिल सैयदी व मौलाई बावा अब्दुल कादर हकीमुद्दीन (अ.कु.) का मजारे मुबारक है जो दरगाहे-हकीमी के नाम से प्रसिद्ध है।
यहाँ प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालुगण देश-विदेश से आते हैं और अपनी झोलियों को अपनी दिली मुरादों से भरकर खुशी-खुशी वापस जाते हैं। दूसरा रौजए मुबारक 41वें दाईल मुतलक सैयदना अब्दुल तैयब जकीउद्दीन साहब (अ.कु.) और तीसरा रौजए मुबारक वलीयुत मुरताज सैयदी शेख जीवनजी (अ.कु.) का है।
सैयदी व मौलाई बावा अब्दुल कादर हकीमुद्दीन बिन सैयदी व मौलाई बावा मुल्ला खान साहब (अ.कु.) का जन्म मुबारक 4 जा. अव्वल 1077 हि. सन् 1666 ई. में रामपुरा में हुआ। आपकी वालिदा का नाम हुर बाई साहेबा था। आपके पिता सैयदी बावा मुल्ला खान साहब का मजार मुबारक रामपुरा में है। आपके पिता अपको सैयदना इस्माईल बदरुद्दीन साहब (अ.कु.) के पास एहमदाबाद लाए।
सैयदना साहब ने आपकी शिक्षा की जिम्मेदारी अपने पुत्र सैयदी शेख आदम सफीउद्दीन साहब (अ.कु.) को सौंपी। आपने शिक्षा ग्रहण के साथ पूर्ण कुरान मजीद भी कंठस्थ फरमाया। आप कुरानपाक की तिलावत बड़ी खुशअलहानी लहने दाऊदी में फरमाते थे।
रामपुरा के राजा इस्लामसिंह ने कुरान मजीद सीखने के लिए दो कारी दिल्ली से बुलावाए थे। एक दिन उनका गुजर बाजार से हुआ जहाँ सैयदी हकीमुद्दीन साहब दुकान में बैठे कुरान मजीद की तिलावत फरमा रहे थे। दोनों कारी आपकी तिलावत सुनकर बड़ी हैरत में पड़ गए कि जब यहाँ इस कदर खुश आवाज में तिलावत करने वाला मौजूद है तो राजा ने हमें इतनी दूर से क्यों बुलाया?
यह खबर राजा को हुई तो उसने आपसे कुरान मजीद सीखने की इच्छा प्रकट की। आपने इसे स्वीकार फरमाया। राजा ने आपकी सेवा से प्रसन्न होकर एक गाँव जागीर में प्रदान किया। इस गाँव का अनाज आपके घर गया और जब आपके पिताजी को इसकी पूर्ण जानकारी हुई तो आपने सैयदी बावा हकीमुद्दीन साहब (अ.कु.) को यह जागीर और अनाज वापस करने का आदेश दिया।
आदेशानुसार आपने गाँव (जागीर) और अनाज राजा को वापस कर दिया। इससे आपके पिताजी बड़े खुश हुए। आपके इस अमल का लंगर (भोज) आज तक जारी है।
सैयदी हकीमुद्दीन साहब (अ.कु.) ने 34 से लेकर 38वे अर्थात पाँच दुआते किराम सैयदना इस्माईल बदरुद्दीन, सैयदना नूर मोहम्मद नूरूद्दीन साहब (अ.कु.), सैयदना अब्दुल तैयब जकीउद्दीन सैयदना साहब (अ.कु.) और सैयदना इस्माईल बदरुद्दीन (अ.कु.) की दिलोजान से श्रद्धापूर्वक सेवा की।
इस महान निःस्वार्थ सेवा का आपको यह फल मिला कि आपके पुत्र 39वें दाई सैयदना इब्राहीम वजीहुद्दीन साहब (अ.कु.) को सैयदना बदरुद्दीन साहब (अ.कु.) ने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त फरमाया। इस प्रकार वर्तमान 52वें दाई सैयदना मौलाना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब (त.उ.श.) आपकी नस्लेपाक (वंश) में 13वें दाईल मुतलक हैं।
यहाँ दूसरा मजार मुबारक 41वें दाईल मुतलक सैयदना अब्दुल तैयब जकीउद्दीन साहब बिन सैयदना इस्माईल बदरुद्दीन साहब (अ.कु.) का है। आप बुरहानपुर तशरीफ लाए और बुरहानपुर को दावते हादिया का केन्द्र बनाया। आपका जन्म 17 रबी उल अव्वल सन् 1147 हि. में बाकानेर में हुआ। आपके पूज्य पिताजी सैयदना इस्माईल बदरुद्दीन साहब (अ.कु.) की रहतल के समय आपकी उम्र 2 वर्ष की थी।
सैयदना इब्राहीम बजीउद्दीन साहब (अ.कु.) ने आपका पालन-पोषण फरमाया। आपकी शादी खुदैजा आई साहेबा बिन्ते सैयदना अलमोअय्यद (अ.कु.) के साथ हुई। सैयदना अलमोअय्यद की रहतल के समय आप मुन्द्रा में मुकीम थे। आप भी हाफिजुल कुरान थे। आपने भी दीन की अनेक रस्मों को (जिंदा) अहया फरमाया। आप प्रत्येक गुरुवार को वाअज (कथा) फरमाते थे।
मोहर्रम में वाअज अशरा मुबारका, फजर (सुबह) की नमाज के बाद यासीन शरीफ और दुआ इन्नल्लाह की दुआ पढ़ने की प्रथा आपने ही शुरू फरमाई। इसी प्रकार मोहर्रम की दस तारीख (आशूरा) को लागन रखने की रस्म भी आप ही ने जारी फरमाई।
आपके आदेशानुसार सैयदी लुकमान जी बिन हबीबुल्ला साहब ने अकबरी सराय चौक के पूर्वी भाग में सन् 1197 हि. में एक भव्य हवेली तामीर फरमाई जो आज भी 'जकवी हवेली' के नाम से प्रसिद्ध और दर्शनीय है। आप यहाँ निवास फरमाते थे। आप यहाँ हल्के (धार्मिक पाठ) पढ़ाते थे। वह कमरा आज भी उसी रूप में सुरक्षित है।
इस पवित्र हवेली में जनाब आमिल साहब का निवास स्थान (दारुल इमारत) अन्जुमने जकवी, (बुरहानपुर बोहरा जमात) का ऑफिस, बुरहानी बचत योजना ऑफिस आदि हैं। इसी पवित्र हवेली में प्रतिवर्ष मोहर्रम में वाअज मुबारका और अन्य दीन मजहबी मजालिस का आयोजन होता है।
यह पवित्र हवेली बहुत शकिस्ता हो गई थी इसलिए सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब (ता.उ.श.) ने इसे उसी प्राचीन रूप में नव-निर्माण करवाकर सन् 1414 हि. में सैयदी बावा हकीमुद्दीन साहब (अ.कु.) के उर्स मुबारक के शुभ अवसर पर 22 शव्वल रविवार (3 अप्रैल 1994 ई.) सुबह 11 बजे इसका उद्घाटन फरमाया।
सैयदी बावा हकीमुद्दीन सा. (अ.कु.) और सैयदना जकीउद्दीन सा. (अ.कु.) द्वारा जारी करदा मुबारक रस्मों से आज भी मोमिनीन लाभान्वित हो रहे हैं। आप सन् 1199 हि. में बुरहानपुर तशरीफ लाए और इसके एक वर्ष बाद अर्थात 4 सफर सन् 1200 हि. (6 दिसंबर 1785 ई.) में रहलत फरमा गए। इसलिए 4 सफर को हर साल आपका उर्स मुबारक बड़ी अकीदत से मनाया जाता है।
आपके रौजए मुबारक में सैयदी शमसुद्दीन भाई साहब बिन खान बहादुर साहब और अमतुल्लाबाई साहेबा बिन्ते जमालउद्दीन साहब (अ.कु.) ने दावत हादिया के नियमानुसार सैयदना युसुफ नजमुद्दीन साहब (अ.कु.) 43वें दाईल मुतलक पर नस (अपना उत्तराधिकारी) फरमाई। आपने वाअज में मोमिनीन को जोहदो-तकवा की वसीयत फरमाई और सैयदी मौलाई बावा अब्दुल कादर हकीमुद्दीन साहब (अ.कु.) की जियारत पहले करने की हिदायत फरमाई। आज भी मोमिनीन इस पर अमल करते हैं।
तीसरा रौजए मुबारक सैयदी शेख जीवनजी बिन सैयदी शेख दाऊद भाई साहेब (अ.कु.) का है। आपका वतन औरंगाबाद था। आप बड़े मुततकी (परहेजगार) और वलीए कामिल थे। आप मोमिनीन के आपसी झगड़ों को बड़ी हुस्ने खूबी से हल फरमाते और उनमें सुलह फरमाते थे। मुसीबतजदा की मुसीबत दूर करना और मोहताजों की मदद करना आपका शेवा (आदत) था। आपने मजूद की फितनत की आग को बुझाया।
सैयदना अलमोअय्यद ने आपको अपने काकाजी साहेब के पुत्र की पुत्री बूजीबाई साहेब से (वृद्धावस्था में) शादी का अमर (हुकुम) फरमाया। खुदा तआला ने आपको इनसे चार फरजन्द (दो पुत्र और दो पुत्रियाँ) से नवाजा। बूजीबाई साहेबा की माँ साहेबा अमीनाबाई साहेबा सैयदी व मौलाई फखरुद्दीन शहीद (अ.कु.) मजार मुबारक गलियाकोट राजस्थान की पाक नस्ल से थीं। आपके दोनों पुत्र सैयदना इज्जुद्दीन व जैनुद्दीन (अ.कु.) दाईल मुतलक हुए।
सै. अब्दुल कादर नजमुद्दीन साहब (अ.कु.) सैयदना तैयब जैनुद्दीन साहब (अ.कु.) के फरजन्द थे। इस प्रकार 52वें दाईल मुतलक सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब आपकी नस्ल पाक में आठवें दाई हैं। यह आपकी दावत और दाई के प्रति सेवाओं का फल है। आप भी मोमिनीन की झोलियाँ उनकी दिली मुरादों से भर देते हैं। 29 शाबान सन् 1209 हि. (20 मार्च सन् 1975) शुक्रवार को आपकी वफात हुई। 29 शाबान सन् 1409 में आपका 200वाँ उर्स मुबारक श्रद्धापूर्वक मनाया गया था।
दरगाह-ए-हकीमी का संपूर्ण कार्य और उत्तम व्यवस्था डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब (त.उ.श.) की सरपरस्ती और निगरानी में बड़ी हुस्नोखूबी से संपन्न होती है। यहाँ वर्षभर श्रद्धालु मोमिनीन हजारों की संख्या में देश-विदेश से आकर मजार अकसद पर सिर झुकाते हैं और अपनी-अपनी दिली मुरादों से झोलियाँ भरते हैं।
आखिर में खुदा तबारक व तआला से बसिदक (सच्चे) दिल से यही दुआ पन्जेतन पाक और आपकी आले पाक (स.अ.) के सदके में हमारे 52वें दाईल मुतलक डॉ. सैयदना व मौलाना अबुलकाइद जौहर मोहम्मद बुरहानुद्दीन साहब को उम्रदराज अता फरमाए। आमीन, आमीन या रब्बल आलामीन।