Bahai Dharm Nav Varsh 2020
'ईश्वर एक है, धर्म एक है, मानवता की एकता हो यह बहाई धर्म का खास संदेश है। प्रतिवर्ष 21 मार्च को बहाई नववर्ष मनाया जाता है। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह ने 18वीं-19वीं शताब्दी में ऐसे समय में जब मानवता की दशा सोचनीय थी, अपने राजसी परिवार के सुखों व ऐशो-आराम का त्याग कर अपने जीवन में घोर कठिनाइयां सहन कीं और मानवता नवजीवन में संचारित हो सके तथा एकता की राह में आगे बढ़ सके, इसके लिए प्रयास किए।
बहाई समाज के लोग 2 से 20 मार्च तक उपवास रखते हैं। बहाई कैलेंडर के अनुसार यह 19वां महीना होता है। उपवास रखने का वास्तविक उद्देश्य तो यही है कि हम विषय वासनाओं से दूर अहंकार से मुक्त रहते हुए, प्रभु का स्मरण करें। बाहरी तौर तरीकों से उभरकर उपवास रखें, अहम् से दूर रहें तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहें, द्वेष भावों से मुक्त हों, हर हाल में खुश रहें। सभी एकात्मकता की भावना से जुड़ें।
भारत वर्ष में इस समुदाय का एक प्रतीक 'कमल मंदिर' है। यह उपासना मंदिर मानवता को संदेश देता है कि मानव भौतिक जगत में रहते हुए भी कमल के फूल की भांति रहे। यह मंदिर बहाई धर्म के आधार पर बना हुआ है। बहाई धर्म के अग्रदूत बाब ने ईरान में पारंपरिक रूप से मनाए जा रहे नववर्ष नवरोज को ही नया साल घोषित किया था, यही नए कैलेंडर के शुरुआत का दिन माना जाता है।