अपनी ओजस्वी वाणी से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के खजाने को समृद्धि के नए शिखर पर ले जाने वाले पंडित भीमसेन जोशी का पुणे में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।
उनके परिवार ने बताया कि जोशी जी को 31 दिसंबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वृद्धावस्था की परेशानियों के कारण उनके गुर्दे और श्वसन तंत्र ने काम करना बंद कर दिया था, जिसके बाद उन्हें जीवन रक्षक तंत्र पर रखा गया था।
खानसाहिब अब्दुल करीम खान के ‘कैराना घराने’ से संबद्ध पंडित जोशी के परिवार में तीन पुत्र और एक पुत्री हैं।
उनके निधन की खबर फैलते ही देश में मायूसी का माहौल है और लोगों ने ‘ख्याल गायकी’ के दिग्गज पंडित जोशी के घर के बाहर उनके अंतिम दर्शन के लिए जुटना शुरू कर दिया है।
चार फरवरी, 1922 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले के गडग में जन्मे पंडित जोशी को सबसे पहले जनवरी, 1946 में पुणे में एक कंसर्ट से सबसे ज्यादा पहचान मिली। यह उनके गुरू स्वामी गंधर्व के 60वें जन्मदिन के मौके पर आयोजित एक समारोह था।
उनकी ओजस्वी वाणी, साँस पर अद्भुत नियंत्रण और संगीत की गहरी समझ उन्हें दूसरे गायकों से पूरी तरह अलग करती थी।गुरू की तलाश के लिए जोशी ने घर छोड़ा और गडग रेलवे स्टेशन चल पड़े। मुड़ी तुड़ी कमीज, हाफ पैंट पहने जोशी टिकट लिए बिना ट्रेन में बैठे और बीजापुर पहुँच गए। वहाँ आजीविका के लिए वह भजन गाने लगे।
एक संगीतप्रेमी ने उन्हें ग्वालियर जाने की सलाह दी। वह जाना भी चाहते थे लेकिन ट्रेन को लेकर कुछ गफ़लत हुई और जोशी महाराष्ट्र की संस्कृति के धनी पुणे शहर पहुँच गए।
पुणे में उन्होंने प्रख्यात शास्त्रीय गायक कृष्णराव फूलाम्बरीकर से संगीत सिखाने का अनुरोध किया। लेकिन फुलाम्बरीकर ने उनसे मासिक फीस की माँग की जिसे देना उस लड़के के लिए संभव नहीं था जिसके लापता होने पर अभिभावक गडग पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करा चुके थे।
जोशी निराश हुए लेकिन उनका मनोबल नहीं टूटा। वह पुणे से मुंबई चले गए। गुरू की तलाश उन्हें हिन्दुस्तानी संगीत के केंद्र ग्वालियर ले गई जो उनका वास्तविक गंतव्य था।
ग्वालियर के महाराज के संरक्षण में रह रहे सरोद उस्ताद हाफि़ज अली खान की मदद से युवा जोशी ने माधव संगीत विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विद्यालय उन दिनों अग्रणी संगीत संस्थान था।
गायकी के तकनीकी पहलुओं को सीखते हुए जोशी ने ‘ख्याल’ की बारीकियों को आत्मसात किया। ख्याल गायन को ग्वालियर घराने की देन माना जाता है।