परिवार की कलह सामने आई : दुष्यंत ने अपने परिवार की पार्टी आईएनएलडी से अलग होकर 2018 में जजपा के नाम से नई पार्टी का गठन किया था। हालांकि 2014 का लोकसभा चुनाव वे आईएनएलडी के टिकट पर ही जीते थे। तब उन्होंने हरियाणा जनहित कांग्रेस के कुलदीप बिश्नोई को 31 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद जजपा की स्थिति पहले की तुलना में कमजोर हुई है क्योंकि उसके प्रदेश अध्यक्ष निशान सिंह समेत कई नेताओं ने पार्टी को बाय-बाय बोल दिया। हालांकि हिसार सीट पर चौटाला परिवार के सदस्यों की उम्मीदवारी से परिवार की कलह भी खुलकर सामने आ गई है।
एक नहीं हो पाया परिवार : जननायक जनता पार्टी का भाजपा के साथ गठबंधन टूटने के बाद परिवार में सुलह की कोशिशें शुरू हुई थीं। तब जजपा सुप्रीमो अजय चौटाला ने कहा था कि यदि पिताजी (ओमप्रकाश चौटाला) कहेंगे तो हम फिर से एक हो सकते हैं, लेकिन इसकी पहल पिताजी को ही करनी होगी। यदि वे कहेंगे तो हम तत्काल लौटने के लिए तैयार हैं। वहीं, अजय के भाई अभय चौटाला ने भी इस बात को लेकर दुख जाहिर किया यदि हम एक होते तो हरियाणा की सत्ता हमारे पास ही होती। हालांकि यह परिवार एक नहीं हो पाया और अब सभी एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में खड़े हैं।
3 जिलों की 9 विधानसभा सीटें : यह संसदीय सीट तीन जिलों की 9 विधानसभा सीटों में बंटा हुआ है। 9 में से 5 पर भाजपा के विधायक हैं, जबकि 4 पर जजपा के। दुष्यंत चौटाला जींद जिले की उचाना कलां सीट से विधायक हैं, वहीं भिवानी जिले की बवानी खेड़ा सीट से भाजपा के बिशंबर सिंह विधायक हैं। आदमपुर, उकलाना, नारनौंद, हांसी, बरवाला, हिसार और नलवा विधानसभा सीटें हिसार जिले की हैं। विधानसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो यहां भाजपा की स्थिति मजबूत है। इस बार हरियाणा में कांग्रेस भी टक्कर देती दिखाई दे रही है, जबकि जजपा पहले की तुलना में कमजोर हुई है।
क्या लोकसभा सीट का इतिहास : हिसार की जनता किसी भी पार्टी और उम्मीदवार को लंबे समय तक प्रतिनिधित्व नहीं दिया। 1952 में यहां सबसे पहला चुनाव कांग्रेस के लाला अचिंत राम ने जीता था। कांग्रेस दूसरा चुनाव जीतने में भी सफल रही, लेकिन 1962 में यह सीट उससे छिन गई, जब संसोपा के मणिराम बागड़ी चुनाव जीते। 1967 और 71 में यहां से फिर कांग्रेस जीती, लेकिन आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में यह सीट एक बार फिर उसके हाथ से निकल गई। 1980 में यहां जनता पार्टी (सेक्युलर) को विजयश्री हासिल हुई।
इस सीट पर सबसे ज्यादा बार लोकसभा जाने का रिकॉर्ड जयप्रकाश के नाम है। 1989 में वे जनता दल के टिकट पर जीते थे, 1996 में हरियाणा विकास पार्टी से चुनाव जीते, जबकि 2004 में वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। सुरेन्द्र सिंह बरवाला आईएनएलडी के टिकट पर दो बार लोकसभा पहुंचे। जयप्रकाश को कांग्रेस ने एक बार फिर इस सीट से उम्मीदवार बनाया है। हो सकता है चौटाला परिवार की 'महाभारत' का फायदा कांग्रेस के जयप्रका को मिल जाए।