कैसरगंज में करण भूषण को पिता बृजभूषण के दबदबे पर भरोसा, सपा से मिलेगी टक्कर

Kaiserganj Lok Sabha Seat: महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का आरोप झेल रहे भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण ‍शरण सिंह को इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दिया है। हालांकि बृजभूषण अंतिम समय तक आश्वस्त थे कि टिकट उन्हें ही मिलेगा, लेकिन पार्टी उनके स्थान पर उनके छोटे बेटे करण भूषण सिंह को कैसरगंज सीट से उम्मीदवार बना दिया। दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी और बसपा ने रामभगत मिश्रा और नरेन्द्र पांडेय को टिकट देकर ब्राह्मण कार्ड खेला है। इस संसदीय सीट पर बड़ी संख्या में ब्राह्मण वोटर हैं। 
 
आसपास की सीटों पर भी बृजभूषण का दबदबा : परिवारवाद की मुखर विरोधी भाजपा ने बृजभूषण की बगावत के डर से ही उनके बेटे करण भूषण को टिकट दिया है। क्योंकि बृजभूषण का प्रभाव सिर्फ कैसरगंज सीट पर ही नहीं, बल्कि गोंडा और बलरामपुर लोकसभा सीट पर भी है। सिंह दोनों ही सीटों पर लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। कैसरगंज सीट पर बृजभूषण लगातार 3 बार से सांसद हैं। 2009 में उन्होंने सपा के टिकट पर चुनाव जीता था, जबकि 2014 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर सपा के विनोद कुमार को 78 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। 2019 में उन्होंने बीएसपी के चंद्रदेव यादव को 2 लाख 61 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। बृजभूषण का बड़ा बेटा प्रतीक भूषण गोंडा विधानसभा सीट से भाजपा का विधायक है।
 
बृजभूषण इस बार भी आखिरी समय तक इस बात को लेकर निश्चिंत थे कि टिकट उन्हें ही मिलेगा। इसके लिए उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी थी। वे टिकट की घोषणा से पहले ही कई रैलियां कर चुके थे। बताया जा रहा है कि सिंह खुद के टिकट के लिए अड़े हुए थे, लेकिन गृहमंत्री अमित शाह के समझाने पर वे मान गए थे। इसके बाद ही करण भूषण का टिकट फायनल हुआ था। अब बृजभूषण बेटे करण के लिए पूरी ताकत से जुट गए हैं। टिकट के लिए उनकी का नाम भी चला था। 
 
भगतराम मिश्रा से मिलेगी कड़ी टक्कर : बृजभूषण का बेटा होना ही करण भूषण की सबसे बड़ी पहचान है। पिता के प्रभाव के आधार पर ही वे वोट मांग रहे हैं। करण कुश्ती महासंघ से भी जुड़े हैं। बृजभूषण के परिवार की दर्जनों शिक्षण संस्थाएं हैं, उनका अपना अलग नेटवर्क है। इसका फायदा भी करण भूषण को मिलेगा। बताया जाता है कि मुस्लिम वोटरों में भी बृजभूषण का प्रभाव है। चूंकि सपा और बसपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे हैं, इसलिए उनके वोट बंटने की संभावना है। हालांकि सपा के भगतराम मिश्रा ने सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ सड़क पर निकलकर अपनी ताकत दिखाने का प्रयास जरूर किया था। ‍मिश्रा को भी इस सीट पर मजबूत उम्मीदवार माना जा रहा है। यदि यादव, मुस्लिम, दलित मतदाता सपा के पक्ष में आते हैं तो भगत परिणाम बदल भी सकते हैं। 
 
विवादों से रहा है नाता : बृजभूषण शरण सिंह का विवादों से नाता रहा है। महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का आरोप तो बृजभूषण झेल ही रहे हैं। वे बाबरी विध्वंस मामले में गिरफ्‍तार भी हुए थे। उन पर टाडा का मुकदमा भी दर्ज हुआ था, लेकिन गवाहों के अभाव में वे बरी हो गए। उन पर कई अन्य मामले भी दर्ज हैं।  
4 विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा : यह संसदीय क्षेत्र 5 विधानसभा सीटों में बंटा हुआ है। एकमात्र कैसरगंज सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है, जबकि पयागपुर, कटरा बाजार, कर्नलगंज और तरबगंज सीटों पर भाजपा का कब्जा है। इनमें पयागपुर और कैसरगंज बहराइच जिले में आती हैं, जबकि कटरा बाजार, कर्नलगंज और तरबगंज गोंडा जिले में आती हैं। 
 
जातीय समीकरण : कैसरगंज सीट ब्राह्मण बहुल है। जानकारी के मुताबिक 20 फीसदी के लगभग यहां ब्राह्मण मतदाता हैं, जबकि 18 फीसदी दलित हैं, इतने ही मुस्लिम मतदाता हैं। राजपूत वोटर यहां 10 फीसदी हैं। यादव, निषाद और कुर्मी क्रमश: 12 प्रतिशत, 9 प्रतिशत और 7 फीसदी हैं। 
 
लोकसभा सीट का इतिहास : लोकसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो 1952 में पहला चुनाव हिन्दू महासभा की शकुंतला नायर ने चुनाव जीता था। शकुंतला ने 1967 और 1071 में भारतीय जनसंघ के ‍टिकट पर भी चुनाव जीता था। भाजपा यहां से 4 बार चुनाव जीत चुकी है। समाजवादी पार्टी यहां से लगातार 5 बार (1996-2009) चुनाव जीत चुकी है। 2009 में बृजभूषण इस सीट पर सपा के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस यहां से 3 बार चुनाव जीतने में सफल रही। 
 

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