पंजाब की सत्ता पर आप काबिज : हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पंजाब की राजनीति में काफी कुछ बदलाव आ चुका है। 2019 में लोकसभा चुनाव के वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 92 सीटों पर रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 59 सीटों का नुकसान हुआ था, जबकि शिरोमणि अकाली दल महज तीन सीटों पर सिमट गया था। उसे 12 सीटों का घाटा हुआ था। वर्तमान में पंजाब की सत्ता पर आप का कब्जा है। हालांकि आप के पास विधानसभा वाला प्रदर्शन दोहराना बड़ी चुनौती होगी।
अकाली दल का खेल बिगाड़ेंगे अमृतपाल : 1989 में खालिस्तान समर्थक और पूर्व आईपीएस अधिकारी सिमरनजीत सिंह मान ने तरन तारन से 4 लाख 80 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीता था। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के अजीत सिंह मान को मात्र 47 हजार वोट मिले थे। इस चुनाव में सिमरनजीत मान को 88 फीसदी वोट हासिल हुए थे। राजनीतिक पंडितों की नजर इस सीट पर इसलिए भी रहेगी कि यहां से अमृतपाल को कितने वोट मिलते हैं।
अकाली दल (अमृतसर) ने अमृतपाल के पक्ष में अपना उम्मीदवार वापस ले लिया है। परमजीत कौर खालड़ा ने अमृतपाल को बिना शर्त समर्थन दिया है। पंजाब एकता पार्टी की खालड़ा को 2019 के चुनाव में 2 लाख 14 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। ऐसे में जानकारों की मानें तो अमृतपाल की उम्मीदवारी से शिरोमणि अकाली दल को नुकसान हो सकता है। शिअद को तब तगड़ा झटका लगा जब चुनाव से ठीक पहले पार्टी के उपाध्यक्ष मंजीत सिंह ने पार्टी से इस्तीफा देकर अमृतपाल को समर्थन दे दिया।
आप का दावा मजबूत : खडूर साहिब संसदीय सीट के अंतर्गत 9 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें जंडियाला, बाबा बकाला, तरन तारन, खेमकरन, पट्टी, खडूर साहिब, कपूरथला, सुल्तानपुर लोधी और जीरा हैं। इनमें 7 सीटों पर आम आदमी पार्टी के विधायक हैं, जबकि एक पर कांग्रेस और एक पर निर्दलीय एमएलए है। यदि विधानसभा चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो इस सीट पर आम आदमी का पलड़ा भारी दिखाई देता है। हालांकि पिछला चुनाव कांग्रेस ने 1 लाख 40 हजार वोटों से जीता था, इसलिए उसकी स्थिति भी मजबूत मानी जा रही है।
क्या कहता है इस सीट का इतिहास : इस सीट पर सर्वाधिक 10 बार शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार विजयी रहे हैं, जबकि 7 बार यहां से कांग्रेस ने जीत हासिल। 1952 से 1977 तक इस सीट पर लगातार कांग्रेस का कब्जा रहा, 1977 में शिअद ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली। फिर 1989 में खालिस्तान समर्थक सिमरनजीत सिंह मान यहां से चुनाव जीते। 1992 में एक बार फिर कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी की। 1996 से 2019 तक यह सीट शिरोमणि अकाली दल के पास रही। वर्तमान में इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है।