Rae Bareli: रायबरेली में आसान नहीं है राहुल गांधी की राह, दादी इंदिरा गांधी को भी झेलनी पड़ी थी शिकस्त

History of Rae Bareli parliamentary seat: वरिष्ठ कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के राजस्थान से राज्यसभा जाने के फैसले के साथ ही यह साफ हो गया था कि इस बार उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार कोई नया चेहरा ही होगा। कांग्रेस ने इस सीट पर गांधी और नेहरू परिवार की विरासत को आगे बढ़ा रहे राहुल गांधी को मैदान में उतारा है। इस सीट से राहुल के दादा फिरोज गांधी, दादी श्रीमती इंदिरा गांधी और मां सोनिया गांधी सांसद रह चुके हैं। आइरन लेडी के नाम से मशहूर इंदिरा गांधी 1977 में इस सीट से चुनाव हार भी चुकी हैं। 
 
पिछली बार अमेठी सीट गंवाने वाली कांग्रेस के लिए रायबरेली में भी मुकाबला इस बार आसान नहीं होगा। भाजपा ने यहां से योगी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह उम्मीदवार बनाया है। भाजपा की ओर से विधायक अदिति सिंह को भी उम्मीदवार बनाने की अटकलें थीं। सोनिया गांधी द्वारा मैदान छोड़ने के बाद अब गांधी-नेहरू परिवार की विरासत भी आधिकारिक रूप से राहुल गांधी के हाथ में आ गई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने दिनेश प्रताप सिंह को 1 लाख 73 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। अब इस सीट का पूरा दारोमदार राहुल गांधी पर है।  ALSO READ: गुजरात में कम से कम 10 लोकसभा सीटों पर दिखेगी टक्कर

इसलिए आसान नहीं मुकाबला : हालांकि कांग्रेस के इस बार राहत की बात यह है कि समाजवादी पार्टी के साथ उसका चुनावी गठबंधन है। अत: सपा का सहयोग भी उसे चुनाव में हासिल होगा। यह भी एक बड़ा सवाल है कि राहुल रायबरेली के मतदाताओं पर कितना असर डाल पाते हैं। दूसरी ओर, मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भी यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न होगी क्योंकि यहां से उनके मंत्री दिनेश प्रताप सिंह मैदान में हैं। 
 
जब रायबरेली में इंदिरा की हार हुई : यूं तो यह सीट पहले चुनाव यानी 1952 से ही गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत सीट रही है, लेकिन बावजूद इसके इस सीट पर आपातकाल के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी को भी हार का सामना करना पड़ा था। 1977 में जनता पार्टी के राजनारायण ने इंदिरा गांधी को 50 हजार से अधिक वोटों से चुनाव हराया था। सबसे पहले इस सीट पर 1952 में श्रीमती गांधी के पति फिरोज गांधी सांसद बने थे, जो 1962 तक इस सीट पर सांसद रहे। ALSO READ: प्रियंका गांधी का पलटवार, पीएम मोदी को बताया शहंशाह
 
इस सीट पर 1962 आरपी सिंह सांसद बने। 1967 में एक बार फिर गांधी परिवार की एंट्री हुई। चौथी लोकसभा यानी 1967 में इंदिरा गांधी लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं। उन्होंने 10 साल तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन, आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में श्रीमती उन्हें राजनारायण से हार का सामना करना पड़ा। राजनारायण इस सीट पर पहली बार गैर कांग्रेसी सांसद बने। 

1980 में इंदिरा को फिर जीत मिली : सातवीं लोकसभा के लिए 1980 में हुए चुनाव में फिर इंदिरा गांधी ने एक बार यहां से चुनाव जीता। इसी साल उन्होंने मेडक (उस समय आंध्रप्रदेश) से भी चुनाव जीता था, लेकिन इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हुए उपचुनाव में गांधी-नेहरू परिवार के अरुण नेहरू सांसद बने। 1984 में वे एक बार फिर इस सीट से सांसद बने। 1989 में गांधी-नेहरू परिवार की शीला कौल (इंदिरा गांधी की मामी) यहां से सांसद बनी। कौल इस सीट पर 1996 तक सांसद रहीं। फिर दो बार इस सीट से गांधी परिवार के करीबी कैप्टन सतीश शर्मा ने इस सीट पर प्रतिनिधित्व किया। ALSO READ: इंदौर लोकसभा सीट पर इस बार बन सकते हैं 2 बड़े रिकॉर्ड
 
पहली बार भाजपा को जीत मिली : 1996 में एक बार फिर यह सीट गांधी परिवार के हाथ से निकली। तब भाजपा के अशोक सिंह चुनाव जीते। 1998 में एक बार ‍फिर भाजपा के अशोक सिंह 40 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते। इस चुनाव में कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी, जबकि सपा और बसपा उम्मीदवार क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे थे। 
 
सोनिया सबसे लंबे समय तक सांसद रहीं : सोनिया गांधी की इस सीट पर पहली बार तेरहवीं लोकसभा के लिए चुनी गईं। इसके बाद वे लगातार चौदहवीं, पन्द्रहवीं, सोलहवीं और स‍त्रहवीं लोकसभा के लिए चुनी गईं। 2009 में सोनिया गांधी ने बसपा उम्मीदवार को 3 लाख 70 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। इस चुनाव में भाजपा तीसरे स्थान पर रही थी। लेकिन, 2019 आते-आते हार के अंतर कम होता गया। इस चुनाव में सोनिया गांधी 1 लाख 67 हजार वोटों से जीती थीं। 

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