हिरण्यगर्भ दान : इस दान की तैयारी और व्यवस्था तुला पुरुष दान जैसी ही होती है। दान देने वाला मृदंग के आकार या सुनहले कमल के आकार का कुंड बनाता है। इसकी ऊंचाई बहत्तर अंगुल और चौड़ाई, अड़तालीस अंगुल होनी चाहिए। इस सोने के पात्र को हिरण्यगर्भ कहा जाता है। इसे तिल के ढेर पर रखा जाता है।
दान देने वाला हिरण्यगर्भ के लिए मंत्र पाठ करता है। फिर वह कहता है- पहले मैं नश्वर शरीर के रूप में मां के गर्भ में पैदा हुआ था, किंतु अब मैं गुरु के आदेश से दिव्य शरीर धारण करूंगा। यह हिरण्यगर्भ पात्र गुरु और यज्ञ कराने वालों में बांट दिया जाता है।