इन्हें 'राजनीति का चाणक्य' कहा जाता था। 'युवा तुर्क' का संबोधन उनकी निष्पक्षता के कारण उन्हें प्राप्त हुआ था। सुयोग्य राजनेताओं में शुमार चंद्रशेखर आचार्य नरेन्द्र देव के व्यक्तित्व एवं चरित्र से काफी प्रभावित थे। उनका वक्तव्य पक्ष और विपक्ष के सांसद बेहद ध्यान से सुनते थे। चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता था कि 'वे राजनीति के लिए नहीं बल्कि देश की उन्नति की राजनीति हेतु कार्य करने में विश्वास रखते हैं।'
राजनीतिक जीवन : 1955-56 में वे उत्तरप्रदेश में राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के महासचिव बने। 1962 में उप्र से राज्यसभा के लिए चुने गए। जनवरी 1965 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 1967 में वे कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव बने। 1973-75 के दौरान वे जयप्रकाश नारायण एवं उनके आदर्शवादी जीवन के और अधिक करीब हो गए। उन्होंने 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक कन्याकुमारी से नई दिल्ली में महात्मा गांधी की समाधि राजघाट तक की लगभग 4,260 किलोमीटर की पदयात्रा की थी।
1990 में प्रधानमंत्री बने : विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार के गिरने के बाद चंद्रशेखर ही कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने। वे 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक प्रधानमंत्री रहे। ये भले ही अल्प समय तक प्रधानमंत्री रहे हों, लेकिन प्रधानमंत्री पद का दायित्व इन्होंने बखूबी निभाया था। इन्होंने विदेशी मुद्रा संकट होने पर स्वर्ण के रिजर्व भंडारों से यह समस्या सुलझाई। कुछ ही समय में स्वर्ण के रिजर्व भंडार लबालब हो गए और विदेशी मुद्रा का संतुलन भी बेहतर हो गया।
विशेष : वे अपने विचारों की अभिव्यक्ति लेखन द्वारा बहुत सशक्त तरीके से करते थे। उन्होंने 'यंग इंडिया' नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का संपादन-प्रकाशन पत्रकारिता का शौक पूर्ण करने के लिए किया। इसका संपादकीय स्वयं चंद्रशेखर लिखते थे, जो सारगर्भित और मर्मस्पर्शी होता था। इन्होंने 'मेरी जेल डायरी' नामक पुस्तक भी लिखी है। इस पुस्तक के अतिरिक्त 'डायनेमिक्स ऑफ चेंज' नामक उनका एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में उन्होंने देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और 'यंग इंडिया' में जो कुछ लिखा था, उसे संग्रहीत किया गया था।