जोधपुर। राजस्थान में आगामी एक दिसंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में मारवाड क्षेत्र की राजनीति में अह्म भूमिका रखने वाले दिग्गज नेताओं के रिश्तेदार उनकी राजनीतिक विरासत को बचाने में लगे हुए हैं।
मारवाड के आठ विधानसभा क्षेत्रों में ऐसे राजनीति के धुरंधरों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई और इसे बचाने के लिए उनके रिश्तेदार एवं उम्मीदवार चुनाव मैदान में जीत के लिए जमीन-आसमान एक किए हुए हैं। इनमें चार कांग्रेस, दो भाजपा उम्मीदवारों के अलावा कुछ निर्दलीय के रूप में चुनावी लड़ाई लड़ रहे हैं।
क्षेत्र में राजनीति में प्रमुख माने जाने वाले जाट नेता रामनिवास मिर्धा, नाथूराम मिर्धा, परसराम मदेरणा एवं गंगाराम चौधरी के रिश्तेदार चुनाव मैदान में हैं। इनमें रामनिवास मिर्धा पुत्र हरेन्द्र मिर्धा मिर्धर्नागौर से निर्दलीय, नाथूराम मिर्धा का भतीजा डेगाना से कांग्रेस टिकट पर रिछपाल मिर्धा, परसराम मदेरणा की पुत्रवधु एवं पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा की पत्नी लीला मदेरणा ओंसिया से कांग्रेस तथा गंगाराम चौधरी की पोती डॉ. प्रियंका चौधरी बाड़मेर से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं।
हरेन्द्र मिर्धा, परसराम मदेरणा के दामाद भी हैं, जिन्होंने इस बार पार्टी टिकट नहीं मिलने के कारण बगावत कर नागौर से निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय किया। उन्होंने नागौर से वर्ष 1993 एवं 1998 का चुनाव जीता जबकि वर्ष 2003 एवं 2008 में चुनाव हार गए।
इसी प्रकार नाथूराम मिर्धा ने भी मेडता एवं नागौर विधानसभा क्षेत्रों से कई बार चुनाव लड़ा और अलग-अलग पार्टियों से चुनाव मैदान में उतरे एवं जीत-हार दोनों ही नसीब हुई। इस बार डेंगाना से कांग्रेस प्रत्याशी बने उनके भतीजे रिछपाल मिर्धा का भी राजनीतिक अनुभव कुछ कम नहीं है।
उन्होंने भी कई राजनीतिक दलों से कई बार चुनावी लड़ाई लड़ी और डेगाना से 1990 में जनता दल 1993 में कांग्रेस. 1998 में निर्दलीय 2003 में कांग्रेस की टिकट पर जीत एवं 2008 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में हार गए थे।
भंवरी देवी प्रकरण में आरोपी पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा की बजाए पार्टी नें उनकी पत्नी लीला मदेरणा पर दांव खेला है। परसराम मदेरणा इस क्षेत्र में अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से 11 बार चुनाव लड़े और नौ बार जीत दर्ज की है तथा उनके पुत्र महिपाल भी भोपालगढ़ एवं ओंसिया से दो बार जीत चुके हैं।
इसी प्रकार बाडमेर जिले की विभिन्न विधानसभा सीट पर अलग-अलग राजनीतिक दलों से आठ बार चुनाव मैदान में उतरे गंगाराम चौधरी ने हर बार जीत दर्ज की और इस बार उनकी पोती डॉ. प्रियंका चौधरी बाडमेर से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रही है।
इसी प्रकार जोधपुर जिले की लूणी विधानसभा सीट पर अपना वर्चस्व रखने वाले कांग्रेसी नेता रामसिंह विश्नोई की पत्नी एवं विधायक मलखान सिंह की मां अमरी देवी को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया है। मलखान सिंह भी भंवरी मामले में आरोपी होने के कारण पार्टी ने उनकी मां को टिकट दिया है। लूणी विधानसभा क्षेत्र से ही कांग्रेस के बागी पूर्व मंत्री राजेन्द्र चौधरी भी अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे है।
वर्ष 2008 में विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन होने पर उनकी परम्परागत सीट बिलाडा सुरक्षित होने के बाद इस बार पार्टी प्रत्याशी से बगावत कर लूणी से निर्दलीय के रूप में चुनावी मैदान में कूदे हैं। वह कांग्रेस एवं भाजपा प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। उन्होंने बिलाडा से वर्ष 1985-1993 एवं 1998 में चुनाव जीते तथा 2003 में हार गए थे।
जोधपुर जिले की शेरगढ़ विधानसभा सीट से पूर्व मंत्री खेत सिंह राठौड़ के पौत्र उम्मेद सिंह राठौड़ कांग्रेसी उम्मीदवार हैं। इस क्षेत्र से खेतसिंह ने 10 बार चुनाव लड़े थे और सात बार जीत हासिल की। उम्मेदसिंह गत वर्ष 2008 के चुनाव भाजपा के बाबूसिंह राठौड़ से हार गए थे लेकिन इस बार फिर मुकाबला कर रहे हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह के पुत्र मानवेन्द्र सिंह बाडमेर जिले की शिव से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं तो ओसियां से पूर्व कांग्रेस नेता नरेन्द्र सिंह भाटी के पुत्र मृगेन्द्र सिंह निर्दलीय के रूप में चुनाव मैदान में हैं। हालांकि मृगेन्द्र सिंह ने चुनावी लड़ाई लड़ने से पहले ही चुनाव से हटने का ऐलान किया है। (वार्ता)