राजस्थान में बागियों के कारण रंग बदलते चुनावी समीकरण

गुरुवार, 14 नवंबर 2013 (12:28 IST)
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भरतपुर। पूर्वी राजस्थान में भरतपुर जिले के 7 विधानसभा क्षेत्रों में अब चुनावी समीकरण अपने रंग दिखाने लगे हैं। 14वीं विधानसभा के निर्वाचन के लिए अधिसूचना जारी होने के बाद से नामांकन के प्रथम चरण की समाप्ति तक रंग बदलते चुनावी गणित के बीच जिले की सातों सीटों पर प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा के अपने जीत के दावों का आकलन भी डगमगाने लगा है।

चुनावों की घोषणा के समय उज्ज्वल राजनीतिक भविष्य की परिकल्पना में हिलोर भर रही भाजपा के मंसूबों पर अब बागियों ने होश फाख्ता कर दिए हैं, लिहाजा 13वीं विधानसभा के लिए जिले में 6 स्थानों पर जीत का परचम लहराने वाली भाजपा इस बार जिले में अपने आपको पूरी तरह से असुरक्षित महसूस कर रही है।

इसकी वजह से कांग्रेस भरतपुर जिले के सभी 7 विधानसभा क्षेत्रों में राहत महसूस कर भाजपा के भारी बहुमत से जीतने की कल्पनाओं के पर कतरने के लिए कमर कसती नजर आ रही है।

भरतपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के बागी गिरधारी तिवारी ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरकर भाजपा के लिए लगातार दो बार जीत दर्ज कराने वाले विधायक विजय बंसल के सामने कठिन चुनौती पेश कर दी है इसी वजह से बंसल के तमाम चुनावी समीकरण गड़बड़ा गए हैं।

यहां भाजपा पूरी तरह से बिखरी नजर आ ही रही है, साथ ही भरतपुर से लगातार तीसरी बार जीत दर्ज कराने के भाजपा के मंसूबे भी अब खतरों से घिर गए हैं। यहां भाजपा के सामने बागी तिवारी की ही चुनौती नहीं है, बसपा के दलवीर सिंह भी भाजपा के मंसूबों को उम्मीद में बदलने की राह में रोड़े बन रहे हैं।

कांग्रेस के उम्मीदवार महेन्द्र तिवारी क्षेत्र में नया चेहरा तो अवश्य है लेकिन सशक्त राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले राजस्थान विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गिरिराज प्रसाद तिवारी के परिवार का सदस्य होने का लाभ उन्हें मिलने की उम्मीद है, लेकिन इस सबके बावजूद इस क्षेत्र के लिए उन्हें भाजपा, बसपा तथा बागी उम्मीदवारों के बीच नजर आ रहे त्रिकोणीय मुकाबले में अपनी जगह बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।

डीग कुम्हेर विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर जिले की दो राजनीतिक हस्तियों के प्रत्याशी आमने-सामने हैं। समूचे जिले की निगाहें भी अतिसंवेदनशील माने जा रहे इस विधानसभा क्षेत्र की तरफ टिकी हुई हैं।

यहां से कांग्रेस के विश्वेन्द्र सिंह तथा भाजपा के डॉ. दिगम्बर सिंह प्रमुख रूप से चुनाव मैदान में हैं। यहां से बसपा उम्मीदवार के रूप में रज्जन सिंह भी चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन दो दिग्गजों की सीधी टक्कर में वे एक प्रतीक उम्मीदवार ही नजर आ रहे हैं।

13वीं विधानसभा के लिए हुए चुनावों में कांग्रेस के विश्वेन्द्र सिंह यहां से हालांकि 3,343 मतों के अंतर से भाजपा के डॉ. सिंह के हाथों पराजित अवश्य हुए थे लेकिन इस बार परिस्थितियां क्या रंग दिखाएंगी, भविष्य के गर्त में है।

यह चुनाव इन दोनों ही राजनीतिक दिग्गजों का भविष्य भी तय करेगा, वैसे जाट वोटों की राजनीति का अखाड़ा डीग कुम्हेर विधानसभा क्षेत्र में तूफान से पहले वाली शांति दिखाई दे रही है।

नगर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक अनिता सिंह एक बार फिर मैदान में हैं। गुर्जर बहुल इस क्षेत्र में कांग्रेस ने बयाना के पूर्व विधायक व कांग्रेस नेता बृजेन्द्र सिंह सूपा को अपना उम्मीदवार बनाया है लेकिन यहां कांग्रेस के बागी मुरारीलाल गुर्जर ने कांग्रेस के सभी जातीय समीकरणों को ध्वस्त कर भाजपा की उम्मीदों को परवान चढ़ाने का काम किया है।

बसपा उम्मीदवार के रूप में सुदेश कुमार चुनाव मैदान में हैं, लेकिन कांग्रेस, भाजपा तथा बागी कांग्रेस उम्मीदवार के त्रिकोणीय मुकाबले में वे अपने वजूद को कायम रख पाएंगे, कहा नहीं जा सकता।

कांग्रेस के बागी उम्मीदवार मुरारीलाल को यदि कांग्रेस मनाने में सफल हो जाती है तो यहां दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच कड़ी टक्कर की उम्मीद है और नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं। बयाना विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा के इरादों को बागियों से जबरदस्त झटका लगा है।

यहां भाजपा के वर्तमान विधायक ग्यारसा राम के स्थान पर पार्टी ने नए चेहरे बच्चू सिंह पर दांव खेला है तो कांग्रेस ने इस क्षेत्र में राजनीति के धुरंधर निर्भय लाल को टिकट देकर भाजपा की बगावत का पूरा लाभ लेने की कोशिश की है। बयाना विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को अपने ही दो बागियों गंगाराम तथा रितु बनावत के विद्रोह से निपटने की चुनौती है।

भाजपा को यहां बसपा की मुन्नीदेवी भी चैन नहीं लेने दे रहीं। गत विधानसभा चुनावों में भी इस क्षेत्र में मुन्नीदेवी भाजपा के मुकाबले दूसरे स्थान पर रही थीं। कुल मिलाकर यहां भाजपा के सामने कठिन चुनौती है तथा कांग्रेस अपने उम्मीदवार के जातीय समीकरण (जाटवः को ठोस आधार मान आगे का रास्ता बनाती नजर आ रही है।

मेव मुस्लिम बहुल वाले कामां विधानसभा क्षेत्र का चुनावी गणित भी इस बार फिर पूरी तरह से जातीय समीकरणों पर आधारित नजर आ रहा है।

गत विधानसभा चुनावों में भरतपुर जिले के 7 विधानसभा क्षेत्रों में से अकेले कामां विधानसभा क्षेत्र में अपनी जीत दर्ज कराने वाली कांग्रेस ने एक बार फिर अपनी विधायक जाहिदा को अपना उम्मीदवार बना भाजपा के सामने कठिन चुनौती पेश की है जबकि भाजपा ने इस क्षेत्र में पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह के पुत्र जगत सिंह को उम्मीदवार बना दांव खेला है।

चुनावी आंकड़े बताते हैं कि इस क्षेत्र के मेव मुस्लिम इलाकों में कांग्रेस की जाहिदा की पकड़ बेहद मजबूत है जिसमें भाजपा के सेंध लगाने की संभावना एक सपने जैसी है। जगत सिंह अपने पिता के रसूखातो का कितना लाभ उठा पाएंगे, कहा नहीं जा सकता।

गुर्जर मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में बसपा उम्मीदवार बाल गोविंद मावई की उपस्थिति भी भाजपा उम्मीदवार की राह में रोड़े अटकाती नजर आ रही है।

भरतपुर जिले के नदबई विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने फिर पूर्व राजपरिवार की सदस्य विधायक कृष्णेन्द्र कौर पर अपना विश्वास प्रकट किया है जबकि कांग्रेस ने अपने जिला अध्यक्ष गिरीश कुमार तथा बसपा ने घनश्याम बाबा को अपना उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस उम्मीदवार गिरीश कुमार गत विधानसभा चुनावों में भी यहां अपना भाग्य आजमाकर तीसरे स्थान पर रहे थे।

जाट बाहुल्य वाले इस क्षेत्र में जहां दोनों प्रमुख दलों ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते जाट उम्मीदवारों पर दांव खेला है जबकि बसपा ने इन जातीय समीकरणों को दरकिनार करते हुए ब्राह्मण उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारकर क्षेत्र में जबरदस्त हलचल पैदा कर दी है।

बसपा के इसी समीकरण ने क्षेत्र में भाजपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है तथा यहां पूरी तरह से त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद से इंकार नहीं किया जा सकता।

वैर विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा ने एक बार फिर अपने विधायक बहादुर सिंह कोली को चुनाव मैदान में उतारकर राजनीति के दिग्गज हरियाणा के राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया परिवार के सामने चुनौती पेश की है।

कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में यहां ओमप्रकाश पहाड़िया को चुनाव मैदान में उतारा गया है। गत विधानसभा चुनावों में भी यहां से पहाड़िया के दूसरे पुत्र संजय पहाड़िया भाजपा के बहादुर सिंह के हाथों शिकस्त खा चुके हैं। बसपा ने इस क्षेत्र में अतरसिंह को एक बार फिर जोर-आजमाइश के लिए भेजा है।

पिछले चुनाव में बसपा के अतरसिंह ने भाजपा के बहादुरसिंह को कड़ी चुनौती तो दी थी लेकिन वे लगभग 4 हजार मतों से परास्त हो गए थे। चुनाव में इस बार भी लगभग पहले जैसी बिसात बिछी हुई है।

कुल मिलाकर चुनावी समर के इस पहले दौर में बागियों के कारण भाजपा को अपना संतुलन बिगड़ता नजर आ रहा है जिसका लाभ उठाने की फिराक में बसपा लगी हुई है लेकिन बनते-बिगड़ते इन चुनावी समीकरणों के बीच कांग्रेस को काफी राहत महसूस हो रही है। (वार्ता)

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