- अनुभूति निगम
मेरे अपने सबके केवल एक ही राम, एक ही राम।
तुलसी हो या वाल्मीकि हो, या फिर कंबन महिर्षि हो,
रामायण तो बहुत सी है, पर सभी जो पढ़ते केवल
एक ही नाम, एक ही राम।
मेरे अपने सबके केवल एक ही राम, एक ही राम।
राम जो घर के सबसे बड़े थे,
प्रेम और करुणा से भरे थे,
पहुँच गए जो पुण्य धाम
मेरे अपने सबके केवल एक ही राम, एक ही राम।
मेरे जीवन की थे वो
सारी सारी की सारी अनुभूति तमाम
आगे बढ़ना, चलते रहना मंज़िल को पाना,
कहते थे वो, यही है काम
मेरे अपने सबके केवल एक ही राम, एक ही राम।
बाकी सब छोड़ दो उस पर, जिनका है बस एक ही नाम,
मेरे अपने सबके केवल एक ही राम, एक ही राम।