5. बच्चे के रोने की बहुत ही प्यारी ध्वनि सुनकर सब रानियां उतावली होकर दौड़ी चली आईं। दासियां हर्षित होकर जहां-तहां दौड़ीं। सारे पुरवासी आनंद में मग्न हो गए। राजा दशरथजी ने सोचा जिनका नाम सुनने से ही कल्याण होता है, वही प्रभु मेरे घर आए हैं। यह सोचकर राजा दशरथ का मन परम आनंद से पूर्ण हो गया। उन्होंने बाजे वालों को बुलाकर कहा कि बाजा बजाओ और इस तरह संपूर्ण नगर में उत्सव की शुरुआत हो गई। ध्वजा, पताका और तोरणों से नगर छा गया। जिस प्रकार से वह सजाया गया, उसका तो वर्णन ही नहीं हो सकता। फिर राजा ने नांदीमुख श्राद्ध करके सब जातकर्म-संस्कार आदि किए और ब्राह्मणों को सोना, गो, वस्त्र और मणियों का दान दिया॥