भारत में राम एक ऐसा नाम है जो अभिवादन या नमस्कार का पर्यायवाची है। हिमालय से कन्याकुमारी तक ही नहीं अपितु सुदूर पूर्व के कई देशों में भी राम और रामायण असाधारण श्रद्धा के केंद्र हैं। राम प्रतिनिधित्व करतें हैं मानवीय मूल्यों की मर्यादा का। रामकथा के सैकड़ों संस्करण हैं जिनके लेखकों को श्रीराम के ईश्वरत्व पर पूर्ण विश्वास था लेकिन उन सब ने श्रीराम का चित्रण एक मनुष्य के रूप में ही किया।
जो समाज की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है और अनेक प्रकार के कष्ट सहन करता है।
चक्रवर्ती सम्राट के सुपुत्र हैं राम पर गुरुकुल या वनवास की सभी मर्यादाओं का पालन करते हैं।
माता व विमाताओं में कोई भेद नहीं. भाइयों से प्रेम की कोई सीमा नहीं।
प्रजा की आंखों के तारे हैं और पराक्रम की कोई तुलना नहीं है।
सबसे महत्वपूर्ण बात कि वे राज्याभिषेक के समाचार से प्रसन्न नहीं होते और वनवास के दुःख का उन पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं है।‘सम्पतौ च विपत्तौ च महतां एक रूपता’के साक्षात् उदाहरण हैं। सारा पराक्रम स्वयं का है लेकिन वे इसका श्रेय अनुज लक्ष्मण को व वानरों और अपनी सेना को देते हैं।कुलीन होने के बाद भी शबरी, निषाद, केवट से अगाध प्रेम है. राम जाति वर्ग से परे हैं. नर हों या वानर, मानव हों या दानव सभी से उनका करीबी रिश्ता है।
क्षमाशील इतने हैं कि राक्षसों को भी मुक्ति देने में तत्पर हैं। वे यह सिखाते हैं कि बिना छल-कपट के मानव अपना जीवन यापन ही नहीं कर सकता अपितु ईश्वरत्व को भी प्राप्त कर सकता है। ‘नरो नारायणो भवेत्’ को उन्होंने ऐसा प्रमाणित कर दिया है कि आज उनका नाम ही ‘पतित पावन’ हो गया है।
राम सिर्फ दो अक्षर का नाम नहीं, राम तो प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है, राम चेतना और सजीवता का प्रमाण है।अगर राम नहीं तो जीवन मरा है। राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम राम है। असीम ताकत अहंकार को जन्म देती है। लेकिन अपार शक्ति के बावजूद राम संयमित हैं।
वे सामाजिक हैं, लोकतांत्रिक हैं. वे मानवीय करुणा जानते हैं। वे मानते हैं- ‘पर हित सरिस धरम नहीं भाई..राम देश की एकता के प्रतीक हैं. महात्मा गांधी ने राम के जरिए हिन्दुस्तान के सामने एक मर्यादित तस्वीर रखी. गांधी उस राम राज्य के हिमायती थे, जहां लोकहित सर्वोपरि हो. इसीलिए लोहिया भारत मां से मांगते हैं- ‘हे भारत माता हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो, राम का कर्म और वचन दो’.
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम समसामयिक है।भारतीय जनमानस के रोम-रोम में बसे श्रीराम की महिमा अपरंपार है.....
एक राम राजा दशरथ का बेटा, एक राम घर-घर में बैठा,
एक राम का सकल पसारा, एक राम सारे जग से न्यारा।
राम का जीवन आम आदमी का जीवन है। आम आदमी की मुश्किल उनकी मुश्किल है.जब राम अयोध्या से चले तो साथ में सीता और लक्ष्मण थे। जब लौटे तो पूरी सेना के साथ। एक साम्राज्य को नष्ट कर और एक साम्राज्य का निर्माण करके. राम अगम हैं संसार के कण-कण में विराजते हैं।
सगुण भी हैं निर्गुण भी।तभी कबीर कहते हैं “निर्गुण राम जपहुं रे भाई”आदिकवि ने उनके संबंध में लिखा है कि वे गाम्भीर्य में उदधि (सागर) के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं. राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं।उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है.
‘राम’ सिर्फ एक नाम नहीं हैं और न ही सिर्फ एक मानव. राम परम शक्ति हैं।
इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।
हमारी अंतिम यात्रा के समय भी इसी ‘राम नाम सत्य है’ के घोष ने हमारी जीवनयात्रा पूर्ण की होती है और कौन नहीं जानता आखिर बापू ने अंत समय में ‘हे राम’ किनके लिए पुकारा था।
राम नाम उर मैं गहिओ जा कै सम नहीं कोई।।
जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुम्हारे होई।।
जिनके सुंदर नाम को ह्रदय में बसा लेने मात्र से सारे काम पूर्ण हो जाते हैं. जिनके समान कोई दूजा नाम नहीं है। जिनके स्मरण मात्र से सारे संकट मिट जाते हैं। ऐसे प्रभु श्रीराम को हम कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं।