Ramayan : क्या मोहनजोदड़ो और रामायण काल एक ही था?

WD Feature Desk

गुरुवार, 29 अगस्त 2024 (17:25 IST)
city of harappan AI image
Ramayan : वर्ममान समय में सिंधु घाटी सभ्यता के नगर मोहनजोदेडो और हड़प्पा की काल को अपडेट किया गया है और इसी के साथ ही राखीगढ़ी की खोज ने भारतीय इतिहास पर नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है। इससे यह पता चलता है कि भारतीय इतिहास ज्ञात रूप से कितना प्राचीन है। हाल ही में हुई खोज इस ओर इशारा करती है कि रामायण का समय और सिंधु घाटी की सभ्यता का समय एक ही था। हालांकि इस पर अभी और शोध किए जाने की जरूरत है।ALSO READ: Ramayan : रामायण काल में कितने जनपद थे, भारत की सीमा कहां से कहां तक थी?
 
पूर्व की खोज : प्रारंभ में हुई खोज और खुदाई के अनुसार 2600 ईसा पूर्व अर्थात आज से 4624 वर्ष पूर्व इस नगर सभ्यता की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता का काल निर्धारण किया गया है लगभग 2700 ई.पू. से 1900 ई. पू. तक का। पहले की खुदाई और शोध के आधार पर माना जाता था कि 2600 ईसा पूर्व अर्थात आज से 4624 वर्ष पूर्व हड़प्पा और मोहनजोदेडो नगर सभ्यता की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता का काल लगभग 2700 ई.पू. से 1900 ई. पू. तक का माना जाता है। बाद की खोजों में यह कहा गया कि सिंधु घाटी सभ्यता 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक चली। इसके बाद लुप्त हो गई।
 
ताजा खोज : आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीनता को लेकर नए तथ्‍य सामने रखे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह सभ्यता 5500 साल नहीं बल्कि 8000 साल पुरानी थी। इस लिहाज से यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की है। मिस्र की सभ्यता 7,000 ईसा पूर्व से 3,000 ईसा पूर्व तक रहने के प्रमाण मिलते हैं, जबकि मोसोपोटामिया की सभ्यता 6500 ईसा पूर्व से 3100 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी। शोधकर्ता ने इसके अलावा हड़प्पा सभ्यता से 1,0000 वर्ष पूर्व की सभ्यता के प्रमाण भी खोज निकाले हैं।
 
वैज्ञानिकों का यह शोध प्रतिष्ठित रिसर्च पत्रिका नेचर ने प्रकाशित किया है। 25 मई 2016 को प्रकाशित यह लेख दुनियाभर की सभ्यताओं के उद्गम को लेकर नई बहस छेड़ गया है। वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी की पॉटरी की नई सिरे से पड़ताल की और ऑप्टिकली स्टिम्यलैटड लूमनेसन्स तकनीक का इस्तेमाल कर इसकी उम्र का पता लगाया तो यह 6,000 वर्ष पुराने निकले हैं। इसके अलावा अन्य कई तरह की शोध से यह पता चला कि यह सभ्यता 8,000 वर्ष पुरानी है।
 
राखीगढ़ी : वैज्ञानिकों की इस टीम के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार हरियाणा के भिर्राना और राखीगढ़ी में भी था। उन्होंने भिर्राना की एकदम नई जगह पर खुदाई शुरू की और बड़ी चीज बाहर लेकर निकले। इसमें जानवरों की हड्डियां, गायों के सिंग, बकरियों, हिरण और चिंकारे के अवशेष मिले। डेक्कन कॉलेज के अराती देशपांडे ने बताया इन सभी के बारे में कार्बन 14 के जरिये जांच की गई। जिससे यह पता चला की उस दौर में सभ्यता को किस तरह की पार्यावरणीय स्थितियों का सामना करना पड़ा था। सिंधु सभ्यता की जानकारी हमें अंग्रेजों के द्वारा की गई खुदाई से ही प्राप्त होती है जबकि उसके बाद अन्य कई शोध और खुदाईयां हुई है जिसका जिक्र इतिहास की किताबों में नहीं किया जाता।
 
इसका मतलब यह कि इतिहास के ज्ञान को कभी अपडेट नहीं किया गया, जबकि अन्य देश अपने यहां के इतिहास ज्ञान को अपडेट करते रहते हैं। सिंधु घाटी में ऐसी कम से कम आठ प्रमुख जगहें हैं जहां संपूर्ण नगर खोज लिए गए हैं। जिनके नाम हड़प्पा, मोहनजोदेड़ों, चनहुदड़ो, लुथल, कालीबंगा, सुरकोटदा, रंगपुर और रोपड़ है।
 
रामायण काल : सिंधुघाटी की सभ्यता तब विद्यमान थी जबकि भगवान श्रीराम (5114 ईसा पूर्व) का काल था। यानी रामायण काल में यह सभ्यता अपने चरम पर थी और श्रीकृष्ण के काल (3228 ईसा पूर्व) में इसका पतन होना शुरू हो गया था।
 
श्रीराम के जन्म का निर्धारण रामायण में बताई गई खगोलीय स्थिति, श्रीराम की वंशावली और देशभर में बिखरे सबूत हैं। उन सबूतों का कार्बन डेटिंग के आधार पर जांच कर उसका मिलान रामायण में बताए गए घटनाक्रम से किया गया है। इस शोधानुसार 5114 ईसा पूर्व 10 जनवरी को दिन के 12.05 पर भगवान राम का जन्म हुआ था। कालक्रम में चैत्र माह जनवरी से आगे बढ़कर वर्तमान में मार्च और अप्रैल के मध्य आने लगा है। एक अन्य शोख के अनुसार राम की जन्म दिनांक वाल्मीकि द्वारा बताए गए ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर अनुसार 4 दिसंबर 7323 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9347 वर्ष पूर्व हुआ था।
 
वाल्मीकि के अनुसार श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी तिथि एवं पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में थे तब हुआ था। इस प्रकार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, ब्रहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर, शुक्र मीन में 27 डिग्री पर एवं शनि तुला राशि में 20 डिग्री पर था। (बाल कांड 18/श्लोक 8, 9)। शोधकर्ता डॉ. वर्तक पीवी वर्तक के अनुसार ऐसी स्थिति 7323 ईसा पूर्व दिसंबर में ही निर्मित हुई थी, लेकिन प्रोफेसर तोबयस के अनुसार जन्म के ग्रहों के विन्यास के आधार पर 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व हुआ था। उनके अनुसार ऐसी आका‍शीय स्थिति तब भी बनी थी। तब 12 बजकर 25 मिनट पर आकाश में ऐसा ही दृष्य था जो कि वाल्मीकि रामायण में वर्णित है।
 
महाभारत काल में पतन : आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत काल का युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ था, अर्थात 5161 वर्ष पूर्व हुआ था। हड़प्पा के नष्ट होने का समय वही है जो कि महाभारत के युद्ध का समय है। उस काल में सिन्धु और सरस्वती नदी के पास ही लोग रहते थे। सिन्धु और सरस्वती के बीच के क्षेत्र में कुरु रहते थे। यहीं सिन्धु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के शहर बसे थे, जो मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी तक फैले थे। सिन्धु घाटी सभ्यता के मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि स्थानों की प्राचीनता और उनके रहस्यों को आज भी सुलझाया नहीं जा सका है। मोहन जोदड़ो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है।
 
जब पुरातत्वशास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोहन जोदड़ो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्होंने देखा कि वहां की गलियों में नरकंकाल पड़े थे। कई अस्थिपंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थिपंजरों ने एक-दूसरे के हाथ इस तरह पकड़ रखे थे, मानो किसी विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुंचा दिया था।
 
उन नरकंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो एक्टिविटी के चिह्न थे, जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गए थे। मोहन जोदड़ो स्थल के अवशेषों पर नाइट्रिफिकेशन के जो चिह्न पाए गए थे, उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था, क्योंकि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है। 
- अनिरुद्ध जोशी

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