Ram mandir pran pratishtha: 22 जनवरी 2024 सोमवार के दिन अभिजीत मुहूर्त में अयोध्या के राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। इससे पहले रामजी की मूर्ति को स्थापित कर दिया गया है। आओ जानते हैं कि किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कैसे करते हैं।
प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ : प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है किसी मूर्ति में प्राणों को स्थापित करना। उसे जीवंत करना। कोई भी मूर्ति तब तक पत्थर की प्रतिमा है जब तक की उसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती है। विशेष पूजा, मंत्रों के साथ उक्त देवता का आवाहन किया जाकर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। उक्त देवता उस मूर्ति में अंश रूप में विराजमान होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
कैसे करते हैं देव प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा?
- प्राण-प्रतिष्ठा दो प्रकार से होती है। प्रथम चल-तथा द्वितीय अचल।
- पहले अधिवास किया जाता है। मूर्ति को एक रात के लिए जल में डुबोया जाता है, जिसे जलाधिवास कहते हैं। फिर अनाज में डुबोया जाता है जिसे धन्यधिवास कहते हैं।
- इसके बाद मूर्ति का जिलाभिषेक और पंचामृताभिषेक किया जाता है। इस संस्कार में 108 प्रकार की सामग्रियों से स्नान कराया जाता है। जैसे सुगंध, पुष्प, पत्तियां, रस, गन्ना आदि।
- इसके बाद मूर्ति को अंत में जलाभिषेक करके संपूर्ण मूर्ति को साफ मुलायम कपड़े से पोंछ लेते हैं।
- प्रतिमा को सुंदर वस्त्र पहना कर प्रभु की प्रतिमा को स्वच्छ जगह पर विराजित करते हैं।
- इसके बाद विधिवत रूप से पुष्पों से श्रृंगार, चंदन का लेप आदि करके प्रतिमा को इत्र अर्पित करके सजाते हैं।
- इसके बाद धूप दीप प्रज्वलित करके स्तुति करते हैं और उनके बीज मंत्रों के साथ नैवेद्य अर्पित करते हैं।
- अंत में पट खुलना में कई मंत्रों के द्वारा मूर्ति के विभिन्न हिस्सों को चेतन किया जाता है। सूर्य देवता से नेत्र, वायु देवता से कान और चंद्र देवता से मन को जागृत करने का आवहान किया जाता है। अंतिम चरण में मूर्ति की आंखों पर बंधी पट्टी को खोला जाता है, जिसे पट खुलना कहते हैं। उस वक्त मूर्ति के सामने आईना रखा होता है। मूर्ति सर्वप्रथम आईने में ही देखती हैं।
- इसके बाद विधिवत रूप से षोडशोपचार पूजन होता है और अंत में आरती करके पूजा का समापन करते हैं।