फिर यह कथा विभीषण ने सुनाई और फिर हनुमानजी ने यह कथा एक पाषाण पर लिखी। बाद में वाल्मीकिजी ने यह कथा लिखी। फिर यह कथा कई ऋषि-मुनियों और आचार्यों ने लिखी। इस तरह इस कथा का प्रचार-प्रसार हर क्षेत्र और हर भाषा में होता रहा। परंपरा से ही यह प्रचलित है कि जहां भी भक्त भाव से राम कथा का आयोजन होता है हनुमानजी वहां अदृश्य रूप से उपस्थित हो जाते हैं। उनके लिए समय और स्थान किसी भी प्रकार से बाधा नहीं बनता। वह एक ही समय में कई स्थानों की रामकथा सुनने में सक्षम हैं, क्योंकि उन्होंने समय और स्थान का अतिक्रमण कर रखा है।
काशी में तुलसीदासजी रामकथा कहने लगे। वहां उन्हें एक दिन एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमानजी का पता बताया। प्रेत ने कहा कि जहां भी भक्तिभाव से रामकथा का आयोजन होता है हनुमानजी किसी न किसी रूप में वहां उपस्थित हो जाते हैं। तुलसीदासजी ने पूछा ऐसा कौन सा स्थान है और कैसे उन्हें पहचानूंगा। तब प्रेत ने उन्हें वह स्थान और पहचान बता दिया। वहां उन्होंने एक वृद्ध के रूप में बैठे हनुमानजी को देखा और उनके पैरों में गिर पड़े। हनुमानजी से मिलकर तुलसीदासजी ने उनसे श्री रघुनाथजी का दर्शन कराने की प्रार्थना की। हनुमानजी ने कहा- तुम्हें चित्रकूट में रघुनाथजी के दर्शन होंगे। तुलसीदासजी ने चित्रकूट में राम के दर्शन किए।
इसी तरह ऐसे कई उदाहरण है जिन्हें यहां बताया जा सकता है कि हनुमानजी वहां जरूर उपस्थित हो जाते हैं जहां पूरे मनोभाव, भक्ति भाव और पवित्रता के साथ अखंड रामायण के पाठ का आयोजन होता है। प्राचीनकाल से ही ऐसे कई लोग हुए और आज भी हैं जिनके अनुभव में यह आया है कि रामायण पाठ के स्थल पर हनुमानजी की उपस्थिति रही है।