प्रभु श्रीराम अयोध्या कब लौटे थे इस पर भले ही विवाद हो सकता हो परंतु प्रभु श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के बाद जब अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने श्रीराम के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियां मनायी थीं। संपूर्ण शहर का रंग-रोगन कर उसको दीपकों से सजाया गया था। सभी पुरुष, बच्चे और महिलाएं नए वस्त्रों में सजे-धजे थे। मिठाइयां बाटी जा रही थीं और उत्सव मनाया गया। आओ जानते हैं कि रामचलित मानस में किस तरह से किया गया है इस घटना का वर्णन।
भावार्थ:- आनन्दकन्द श्री रामजी अपने महल को चले, आकाश फूलों की वृष्टि से छा गया। नगर के स्त्री-पुरुषों के समूह अटारियों पर चढ़कर उनके दर्शन कर रहे हैं ॥8 (ख)॥
भावार्थ:- सोने के कलशों को विचित्र रीति से ( स्वण माणिक्य से)अलंकृत कर और सजाकर सब लोगों ने अपने-अपने दरवाजों पर रख लिया।सब लोगों नेमंगल के लिए बंदनवार, ध्वजा और पताकाएं लगाईं॥1॥
बीथीं सकल सुगंध सिंचाई।गजमनि रचि बहु चौक पुराईं।
नाना भांतिसुमंगल साजे।हरषि नगर निसान बहु बाजे॥2॥
भावार्थ:- सारी गलियां सुगंधित द्रवों से सिंचाई गईं।गजमुक्ताओं से रचकर बहुत सी चौकें पुराई गईं।अनेकों प्रकार के सुंदर मंगल साज सजाए गए और हर्षपूर्वक नगर में बहुत से डंके बजने लगे॥2॥
भावार्थ:- स्त्रियां जहां-तहां निछावर कर रही हैं और हृदय में हर्षित होकर आशीर्वाद देती हैं।बहुत सी युवती (सौभाग्यवती) स्त्रियां सोने के थालों में अनेकों प्रकार की आरती सजाकर मंगलगान कर रही हैं॥3॥
करहिं आरती आरतिहर कें।रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें॥
पुर सोभा संपति कल्याना। निगम सेष सारदा बखाना॥4॥
भावार्थ:- वे आर्तिहर (दुःखों को हरने वाले) और सूर्यकुल रूपी कमलवन को प्रफुल्लित करने वाले सूर्य श्री रामजी की आरती कर रही हैं।नगर की शोभा, संपत्ति और कल्याण का वेद, शेषजी और सरस्वती जी वर्णन करते हैं-॥4॥
तेउ यह चरित देखिठगि रहहीं।उमा तासु गुन नर किमि कहहीं ॥5॥
भावार्थ:- परंतु वे भी यह चरित्र देखकर ठगे से रह जाते हैं (स्तम्भित हो रहते हैं)। (शिवजी कहते हैं-) हे उमा! तब भला मनुष्य उनके गुणों को कैसे कह सकते हैं॥5॥
दोहा :
नारि कुमुदिनीं अवध सर रघुपति बिरह दिनेस।
अस्त भएंबिगसत भईं निरखि राम राकेस ॥9 क॥
भावार्थ:- स्त्रियां कुमुदनी हैं, अयोध्या सरोवर है और श्री रघुनाथजी का विरह सूर्य है (इस विरह सूर्य के ताप से वे मुरझा गई थीं)। अब उस विरह रूपी सूर्य के अस्त होने पर श्री राम रूपी पूर्णचन्द्र को निरखकर वे खिल उठीं ॥9 (क)॥
होहिं सगुन सुभबिबिधि बिधि बाजहिं गगन निसान।
पुर नर नारि सनाथ करि भवन चले भगवान। 9 ख॥
भावार्थ:- अनेक प्रकार के शुभ शकुन हो रहे हैं, आकाश में नगाड़े बज रहे हैं। नगर के पुरुषों और स्त्रियों को सनाथ (दर्शन द्वारा कृतार्थ) करके भगवान् श्र रामचंद्रजी महल को चले ॥9 (ख)