यहां बसी है श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या, जानें प्राचीन इतिहास

अनिरुद्ध जोशी

मंगलवार, 14 जुलाई 2020 (13:52 IST)
यह विवाद पहले भी उठाया गया था कि प्रभु श्रीराम का जन्म कहां हुआ था। राजनीतिक मंशा और विरोधाभास खड़ा करने के लिए पहले उनके जन्म स्थान को पहले पाकिस्तान में बताया गया और अब नेपाल के पीएम ओली शर्मा कहते हैं कि उनका जन्म नेपाल में हुआ था। वाल्मीकि कृत रामायण और रामचरित रामायण के अनुसार अयोध्या में राम का जन्म हुआ था। अब सवाल यह उठता है कि अयोध्या कहां बसी थी या है। आओ जानते हैं क्या है इसका प्राचीन इतिहास।
 
दावा : 
1. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनेल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के वरिष्ठ सदस्य रहे अब्दुल रहीम कुरैशी की किताब 'फैक्ट्स ऑफ अयोध्या एपिसोड' (मिथ ऑफ राम जन्मभूमि) में वे कहते हैं कि राम का जन्म हरियाणा, पंजाब या फिर पाकिस्तान यहां तक कि अफगानिस्तान में भी हो सकता है। इस किताब में उन्होंने सबूत के तौर पर आर्कियोलॉजिस्ट जासू राम के रिसर्च को प्रकाशित किया है। जासू के इस रिसर्च में कहा गया है कि वास्तव में अयोध्या राम का जन्म स्‍थान नहीं है, बल्कि 'रामदेरी' राम का जन्म स्‍थान है और वर्तमान में रामदेरी पाकिस्तान में है। दरअसल, रामजन्मभूमि और बाबरी विवाद के चलते इस तरह का भ्रम कई बार फैलाया गया जिससे हिन्दुओं का जन्मभूमि पर दावा शिथिल हो जाए। हालांकि उनका दावा तब झूठा साबित हो गया जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद की भूमि के नीचे कई पुरातात्विक प्रमाण पाए गए। इस तरह का दावा करने वालों को पेट्रा के बारे में भी जान लेना चाहिए।
 
 
2. नेपाल की कम्युनिष्ट पार्टी के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने हाल ही में कहा है कि राम का जन्म नेपाल में हुआ था। अपने सरकारी आवास पर कवि भानुभक्त के जन्मदिन पर हुए समारोह में केपी शर्मा ओली ने यह बयान दिया। ओली ने दावा किया कि असली अयोध्या- जिसका प्रसिद्ध हिन्दू महाकाव्य रामायण में वर्णन है- वो नेपाल के बीरगंज के पास एक गांव है। वहीं भगवान राम का जन्म हुआ था। भगवान राम भारत के नहीं, बल्कि नेपाल के राजकुमार थे। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के उप-प्रमुख बिष्णु रिजल ने लिखा कि यह कहना एक बड़ा भ्रम है कि कोई व्यक्ति अप्रमाणिक, पौराणिक और विवादास्पद बातें कहकर विद्वान बन जाता है। यह ना केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि रहस्यमय भी है कि कैसे विरोध और उकसावे के लिए रोज नए मसाले डाले जा रहे हैं।
 
उपरोक्त दावों के बाद अब हम बात करते हैं कि आखिकार में राम की जन्मभूमि अयोध्या कहां बसी है?
 
1. कौशल राज्य की राजधानी है अयोध्या : राम के काल में भारत 16 महा जनपदों में बंटा था। महाभारत काल में 18 महाजनपदों में बंटा था। इन महाजनपदों के अंतर्गत कई जनपद होते थे। उन्हीं में से एक था कौशल महाजनपद इसकी राजधानी थी अवध जिसके साकेत और श्रावस्ती दो हिस्से बाद में हुए। अस अवध को ही अयोध्या कहा गया। दोनों का अर्थ एक ही होता है। रामायण और रामचरित मानस के अनुसार राजा दशरथ के राज्य कौशल की राजधानी अयोध्या थी।
 
2. सरयू के पास है अयोध्या : वाल्‍मीकि रामायण के 5वें सर्ग में अयोध्‍या पुरी का वर्णन विस्‍तार से किया गया है। जिसमें बताया गया है कि सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर की रामायण अनुसार विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापना की गई थी। सभी शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलेगा कि अयोध्या नगरी सरयु नदी के तट पर बसी थीं जिसके बाद नंदीग्राम नामक एक गांव था। अयोध्या से 16 मील दूर नंदिग्राम हैं जहां रहकर भरत ने राज किया था। यहां पर भरतकुंड सरोवर और भरतजी का मंदिर है। अन्य किसी भी दावे वाले स्थान पर न तो नंदिग्राम है और न ही सरयू नदी और ना ही हनुमानगढ़ी।

पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा से जब मनु ने अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात कही तो वे उन्हें विष्णुजी के पास ले गए। विष्णुजी ने उन्हें साकेतधाम में एक उपयुक्त स्थान बताया। विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा तथा मनु के साथ देवशिल्‍पी विश्‍वकर्मा को भेज दिया। इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्‍त स्‍थान ढूंढने के लिए महर्षि वशिष्‍ठ को भी उनके साथ भेजा। मान्‍यता है कि वशिष्‍ठ द्वारा सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया, जहां विश्‍वकर्मा ने नगर का निर्माण किया।
 
 
3. रघुवंशों की राजधानी थी अयोध्या : अयोध्या रघुवंशी राजाओं की कौशल जनपद की बहुत पुरानी राजधानी थी। वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु के वंशजों ने इस नगर पर राज किया था। इस वंश में आगे चलकर राजा हरिशचंद्र, भगिरथ, सगर आदि के बाद राजा दशरथ 63वें शासक थे। इसी वंश के राजा भारत के बाद श्रीराम ने शासन किया था। उनके बाद कुश ने एक इस नगर का पुनर्निर्माण कराया था। कुश के बाद बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इस पर रघुवंश का ही शासन रहा। फिर महाभारत काल में इसी वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों महाभारत के युद्ध में मारा गया था। बृहद्रथ के कई काल बाद तक यह नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा। अंत में यहां महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की और उसके बाद से ही अयोध्या के लिए लड़ाइयां शुरु हो गई। उसके बाद तैमूर, तैमूर के महमूद शाह और फिर बाबर ने इस नगर को लूटकर इसे ध्वस्त कर दिया था।
 
4. अयोध्या का अन्य उल्लेख : वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या 12 योजन-लम्बी और 3 योजन चौड़ी थी। सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसे 'पिकोसिया' संबोधित किया है। उसके अनुसार इसकी परिधि 16ली (एक चीनी 'ली' बराबर है 1/6 मील के) थी। संभवतः उसने बौद्ध अनुयायियों के हिस्से को ही इस आयाम में सम्मिलित किया हो। आईन-ए-अकबरी के अनुसार इस नगर की लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस मानी गई है। नगर की लंबाई, चौड़ाई और सड़कों के बारे में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं- 'यह महापुरी बारह योजन (96 मील) चौड़ी थी। इस नगरी में सुंदर, लंबी और चौड़ी सड़कें थीं।' -(1/5/7)

5. अवध क्यों कहते हैं : स्कंदपुराण के अनुसार अयोध्या शब्द 'अ' कार ब्रह्मा, 'य' कार विष्णु है तथा 'ध' कार रुद्र का स्वरूप है। इसका शाब्दिक अर्थ है जहां पर युद्ध न हो। यह अवध का हिस्सा है। अवध अर्थात जहां किसी का वध न होता हो। अयोध्या का अर्थ -जिसे कोई युद्ध से जीत न सके। राम के समय यह नगर अवध नाम की राजधानी से जाना जाता था। बौद्ध ग्रन्थों में इन नगरों के पहले अयोध्या और बाद में साकेत कहा जाने लगा। कालिदास ने उत्तरकोसल की राजधानी साकेत और अयोध्या दोनों ही का नामोल्लेख किया है।
 
6.राम के जन्म स्थान पर सबसे पहले किसने बनाया था मंदिर : महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा। पौराणिख उल्लेख के अनुसार यहां जन्मभूमि पर सबसे पहले राम के पुत्र कुश ने एक मंदिर बनवाया था।
 
7. विक्रमादित्य ने पुन: निर्माण कराया : इसके बाद यह उल्लेख मिलता है कि ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने इसे राम जन्मभूमि जानकर यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए थे। कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी।
 
8. पुष्यपित्र शुंग ने कराया पुन: निर्माण : विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है। यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिन्दुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते थे।

9.किसने तोड़ा था अयोध्या में राम मंदिर?
विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। कहते हैं कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां भव्य मंदिर मौजूद था। 14वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही राम जन्मभूमि एवं अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए गए। अंतत: 1527-28 में इस भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। कहते हैं कि मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के सेनापति मीर बकी ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही।

10. सप्तपुरियों में से एक अयोध्या : प्राचीन उल्लेखों के अनुसार प्रभु श्रीराम का जन्म सप्तपुरियों में से एक अयोध्या में हुआ था। वर्तमान में सरयू तट पर स्थिति जो अयोध्या है वही सप्तपुरियों में से एक है। यदि अयोध्या कहीं ओर होती तो उसका सप्तपुरियों के वर्णन में कहीं ओर बसे होने का उल्लेख होता और वर्तमान की अयोध्या एक तीर्थ स्थल नहीं बनता जो कि महाभारत काल से ही विद्यमान है। भारत की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्त पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका में शामिल किया गया है।


11. मिथिला कहां है : रामायण काल में मिथिला के राजा जनक थे। उनकी राजधानी का नाम जनकपुर है। जनकपुर नेपाल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह नेपाल की राजधानी काठमांडू से 400 किलोमीटर दक्षिण पूरब में बसा है। यह शहर भगवान राम की ससुराल के रूप में विख्यात है। इस नगर में ही माता सीता ने अपना बचपन बिताया था। कहते हैं कि यहीं पर उनका विवाह भी हुआ। कहते हैं कि भगवान राम ने इसी जगह पर शिव धनुष तोड़ा था। यहां मौजूद एक पत्थर के टुकड़े को उसी धनुष का अवशेष कहा जाता है। यहां धनुषा नाम से विवाह मंडप स्‍थित है इसी में विवाह पंचमी के दिन पूरी रीति-रिवाज से राम-जानकी का विवाह किया जाता है। यहां से 14 किलोमीटर 'उत्तर धनुषा' नाम का स्थान है। राजा जनक विदेही और श्रमणधर्मी थे। विश्वामित्र का आश्रम वाराणसी के आसपास ही कहीं था। वहीं से श्रीराम जनकपुर गए थे। अयोध्या से जनकपुर लगभग 522 किलोमीटर है।


निष्कर्ष : अयोध्या सप्तपुरियों में से एक है जिसके पास नंदिग्राम है। अयोध्या के पास सरयू नदी बहती है। स्‍कंदपुराण के अनुसार अयोध्‍या भगवान विष्‍णु के चक्र पर विराजमान है। विष्णु का चक्र स्थान सरयू के पास ही स्थित है। अयोध्या की स्थापना राजा वैवस्वत मनु ने की थी जिनके कुल भी भगवान ऋषभनाथ और भरत हुए थे। उन्हीं के कुल भी इक्ष्वाकु हुए जिन्होंने अयोध्या पर राज किया। राजा हरिशचंद्र के बाद के कुल में राजा रघु हुए और फिर दशरथ हुए। वाल्मीकि कृत रामायण और पुराणों के अनुसार दशरथ की अयोध्या में ही प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था और उन्होंने सरयू में ही जल समाली ले ली थी। अयोध्या को छोड़कर दुनिया में ऐसी कोई नगरी नहीं है जिसके पास सरयू नदी है, जो रघुओं की राजधानी है और जो विष्णु के चक्र पर विराजमान है। हजारों प्रमाण है कि इसी अयोध्‍या में श्रीराम का जन्म हुआ था।

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