भोपाल। देश में स्कूली शिक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हों, लेकिन राज्य सरकारें शिक्षा के प्रति कितनी असंवेदनशील है, इसका खुलासा कैग की रिपोर्ट में हुआ है। भारत के आने वाले भविष्य को स्कूलों में कितनी सुविधाएं दी जा रही हैं, इसके आंकड़े भी इस रिपोर्ट में है। मध्यप्रदेश सरकार तो शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू करने में भी नाकाम रही है। इसके अलावा स्कूलों में पीने के पानी और शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है। सीएजी की यह रिपोर्ट 30 नवंबर को विधानसभा में पेश हुई थी। सीएजी ने प्रदेश में सरकारी स्कूलों की मौजूदा परिस्थितियों पर तीखी टिप्पणी की है।
देश में 1 अप्रैल 2010 से शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुआ था। इसमें प्रावधान है कि कानून लागू होने के बाद तीन साल में सभी राज्यों को सभी मानकों को पूरा करना होगा, लेकिन राज्य सरकार अब तक कुछ विशेष प्रदर्शन नहीं कर पाई है।
रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 1 लाख 14 हजार 255 सरकारी प्राइमरी और मिडिल स्कूल हैं। 7 हजार 180 स्कूलों में छात्रों और पांच हजार 945 स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं हैं। खेलों के प्रति सरकार कितनी गंभीर है इस बात का इससे लगाया जा सकता है कि 44 हजार 754 स्कूलों में खेल के लिए मैदान नहीं हैं। 10 हजार 763 ऐसे भी स्कूल हैं जिनमें पुस्कालय नहीं हैं।
देश में 1 अप्रैल 2010 से शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुआ है। इसमें प्रावधान है कि कानून लागू होने के बाद तीन साल में सभी राज्यों को सभी मानकों को पूरा करना होगा। लेकिन राज्य सरकार अब तक कुछ विशेष प्रदर्शन नहीं कर पाई है। सीएजी ने प्रदेश में सरकारी स्कूलों की मौजूदा परिस्थितियों पर तीखी टिप्पणी की है।
छत्तीसगढ़ की यह है स्थिति : मध्यप्रदेश के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी यही स्थिति है। कुछ समय पहले आई कैग की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीगढ़ के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले 8वीं कक्षा के 73.5 फीसदी छात्र दूसरी कक्षा की किताबें नहीं पढ़ पाते हैं और 5वीं के 56 फीसदी छात्र तीसरी कक्षा के पाठ नहीं पढ़ सकते हैं।
प्रदेश में 30,371 प्राथमिक स्कूल, 13,117 पूर्व माध्यमिक स्कूल, 1,940 हाई स्कूल तथा 2,380 हायर सेकेंडरी स्कूल हैं। प्रदेश में करीब 58 हजार शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। इन आंकड़ों से समझा जा सकती है कि प्रदेश स्कूलों में बच्चे कैसे पढ़ते होंगे।