देशमुख की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने अदालत को बताया कि सीबीआई जांच की शुरुआत अप्रैल में उच्च अदालत के आदेश से शुरू हुई, लेकिन केंद्रीय एजेंसी ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता को अभियोजित करने से पहले राज्य सरकार की मंजूरी नहीं ली, जबकि उस समय वह लोकसेवक थे।
देसाई ने कहा कि मंजूरी के बिना देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार और कदाचार की जांच गैरकानूनी है। उन्होंने सवाल किया, क्या आप कानूनी जरूरतों की अनदेखी कर सकते हैं? राज्य से संपर्क (मंजूरी के लिए) किया जाना चाहिए था, इस प्रकार पूरी जांच गैर कानूनी है।
न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति एनएम जामदार की पीठ के समक्ष जिरह करते हुए देसाई ने कहा कि आप भावनाओं को किनारे कर सकते हैं, लेकिन हम प्रक्रिया और कानून के राज की अनदेखी नहीं कर सकते। यहां तक कसाब जैसे व्यक्ति को भी इस देश के कानून के राज का लाभ मिला। इस देश में प्रत्येक को कानूनी प्रक्रिया का लाभ मिलता है।
मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमवीर सिंह ने देशमुख पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, जिसके बाद सीबीआई ने उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। देशमुख ने इसी प्राथमिकी को अदालत में चुनौती दी है जिस पर उच्च न्यायालय में शुक्रवार को सुनवाई हुई। इस साल अप्रैल में मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्त की पीठ ने सीबीआई को देशमुख के खिलाफ प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया था। अदालत के आदेश के बाद देशमुख ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
यह जांच वकील जयश्री पाटिल द्वारा मालाबार हिल पुलिस थाने में दर्ज शिकायत के आधार पर की जा रही है। उन्होंने अपनी शिकायत में देशमुख और सिंह के खिलाफ जांच की मांग की थी। पाटिल ने शिकायत के साथ आईपीएस अधिकारी द्वारा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे पत्र की प्रति भी संलग्न की थी। पत्र में राकांपा नेता पर आरोप लगाए गए थे। इसके बाद सीबीआई ने देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार और कदाचार के मामले में प्राथमिकी दर्ज की।