चमलियाल सीमा चौकी (जम्मू फ्रंटियर)। अंतत: पाक सेना को परंपराओं के आगे झुकना पड़ा है और परंपराएं भी जीवित रहेंगी। इस सीमा चौकी पर स्थित बाबा चमलियाल की समाधि पर 27 जून को लगने वाले मेले में इस बार भी 'शकर' और 'शर्बत' बंटेगा।
उड़ी-मुजफ्फराबाद तथा पुंछ-रावलाकोट सड़क मार्गों के खुलने के बाद तो इस मेले में शिरकत करने की खातिर पाक नागरिक भी जोर डाल रहे हैं, पर अभी उन्हें इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि भारत सरकार के साथ इस आशय का समझौता अभी हुआ नहीं है।
इतना जरूर है कि उस ओर के पाकिस्तानी रेंजरों के अधिकारी दल-बल और अपने परिवारों समेत इस ओर आने के लिए अब संदेशे दे रहे हैं। यह सब वे परंपराओं को जीवित रखने के लिए कर रहे हैं, जो हमेशा ही तनाव और सरहदों पर भारी पड़ती हैं। हालांकि पिछले कई दिनों से पाक सेना सीमाओं पर लगातार सीजफायर का उल्लंघन कर रही है लेकिन चमलियाल मेला इन सबसे अप्रभावित रहेगा, पाक रेंजरों ने इसका आश्वासन दिया है।
अगर परंपराओं की बात की जाए तो भारत-पाक सीमा पर स्थित बाबा दिलीप सिंह की समाधि पर प्रतिवर्ष लगने वाला चमलियाल मेला इसकी एक सशक्त कड़ी है। इस परंपरा को जीवित रखने की खातिर भारतीय प्रयास तो हमेशा जारी रहे हैं, लेकिन पाकिस्तानी पक्ष का रवैया हमेशा ढुलमुल ही रहा है। लेकिन पाकिस्तान की ढुलमुल नीति के बावजूद बीएसएफ ने इस बार भी दरगाह स्थल पर ही मेले को आयोजित करने का फैसला किया है।
उस पार से आने वालों के स्वागत की तैयारी भी चल रही है। नतीजतन सरहद, तनाव और ढुलमुल रवैए पर परंपराएं इस बार भी भारी पड़ेंगी तथा पिछले 72 सालों से पाक श्रद्धालु जिस 'शकर' तथा 'शर्बत' को भारत से लेकर अपनी मनौतियों के पूरा होने की दुआ मांगते आए हैं, इस बार भी उन्हें ये दोनों नसीब हो पाएंगे। इसकी खातिर पहले ही पाक रेंजर संदेश भेज चुके हैं।
जिस बाबा दिलीप सिंह मन्हास की याद में यह मेला मनाया जाता है, वह देश के बंटवारे से पूर्व से चला आ रहा है। देश के बंटवारे के उपरांत पाक जनता उस दरगाह को मानती रही, जो भारत के हिस्से में आ गई। यह दरगाह जम्मू सीमा पर रामगढ़ सेक्टर में इसी चमलियाल सीमा चौकी पर स्थित है। इस दरगाह मात्र की झलक पाने तथा सीमा के इस ओर से पाका भेजे जाने वाले 'शकर' व 'शर्बत' की 4 लाख लोगों को प्रतीक्षा होती है।
कहा जाता है कि इस मिट्टी-पानी के लेप को शरीर पर मलने से चर्म रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है और पिछले 72 सालों से विभाजन के बाद से ही इस क्षेत्र की मिट्टी तथा पानी को ट्रॉलियों और टैंकरों में भरकर पाक श्रद्धालुओं को भिजवाने का कार्य पाक रेंजर, बीएसएफ के अधिकारियों के साथ मिलकर करते रहे हैं।
चमलियाल सीमा चौकी पर बाबा दलीप सिंह मन्हास की दरगाह है और उसके आसपास की मिट्टी को 'शकर' के नाम से पुकारा जाता है तो पास में स्थित एक कुएं के पानी को 'शर्बत' के नाम से। जीरो लाइन पर स्थित चमलियाल बीओपी पर जो मजार है, वह बाबा दिलीप सिंह मन्हास की समाधि है।
उनके बारे में प्रचलित है कि उनके एक शिष्य को एक बार चम्बल नामक चर्म रोग हो गया था। बाबा ने उसे इस स्थान पर स्थित एक विशेष कुएं से पानी व मिट्टी का लेप शरीर पर लगाने को दिया था, उसके प्रयोग से शिष्य ने रोग से मुक्ति पा ली थी।