मंगलवार सुबह यह सभी अभियुक्त जेल से सीबीआई अदालत में लाए गए थे। 28 फरवरी को न्यायालय ने इन चारों को महेन्द्र भाटी हत्याकांड का दोषी ठहराया था। तब वहां मौजूद तीन अभियुक्तों करन यादव, प्रणीत भाटी एवं पाल सिंह लक्कड़पाला को न्यायालय ने जेल भेज दिया था जबकि डीपी यादव को गैर हाजिर होने के कारण 9 मार्च तक आत्मसमर्पण का आदेश दिया था। जिसके क्रम में 9 मार्च को डीपी यादव ने आत्मसमर्पण कर दिया। उन्हें न्यायालय ने जेल भेज दिया। जेल में डीपी यादव ने अलग वार्ड देने की मांग की जिसे न्यायालय ने मान लिया।
13 सितंबर 1992 को डीपी यादव एवं उनके तीन साथियों पर दादरी के विधायक महेन्द्रसिंह भाटी एवं उनके मित्र उदय प्रकाश आर्य को दादरी रेलवे क्रॉसिंग पर एके 47 की मदद से भून डालने का आरोप है। इस मामले में 10 सितंबर 1993 को भाटी हत्याकांड की तफ्तीश सीबीआई को सौंपी गई थी। 7 अक्टूबर 1996 को सीबीआई ने आठ लोगों के विरुद्ध इस हत्याकांड की साजिश रचने के लिए चार्जशीट दाखिल की थी। यह मामला पहले उत्तरप्रदेश में चलता रहा लेकिन मृतक विधायक महेन्द्र भाटी के परिजनों की मांग पर इसे बाद में दूसरे राज्य उत्तराखंड की देहरादून सीबीआई कोर्ट को स्थानांतरित किया गया। सुनवाई के दौरान आरोप में वर्जित आठ लोगों में से चार की मौत निर्णय आने से पहले ही हो चुकी है।
मंगलवार जब इस मामले की सजा सुनाई जाने की तिथि निर्धारित हुई तो कोर्ट ने महेन्द्र भाटी के परिजन तो थे ही डीपी यादव के तमाम समर्थक भी यूपी और उत्तराखंड से यहां आए हुए थे। अदालत की कार्यवाही शुरू होते ही डीपी यादव समेत चारों अभियुक्तों को कोर्ट के सम्मुख पेश किया गया। न्यायालय ने डीपी यादव, करन यादव व उनके साथी प्रणीत भाटी को अंतर्गत धारा 302 हत्या एवं धारा 307 हत्या के प्रयास, धारा 326 हत्या के लिए धारदार हथियार से वार एवं धारा 120 बी अपराधिक षड्यंत्र रचने के लिए दोषी माना है। जबकि पाल सिंह उर्फ लक्कड़पाला को अंतर्गत धारा 27 आर्म्स एक्ट के लिए भी दोषी ठहराया है।