इस मुद्दे पर ट्विटर पर भी काफी कमेंट हुए। एक व्यक्ति ने लिखा कि मुझे एक बात समझ नहीं आती कि सालभर करोड़ों-अरबों बकरा, मुर्गा, मछली खाने वालों की नानी बकरीद आने पर ही क्यों मरने लगती है। ये पेटा वाले सालभर कहां रहते हैं।
एक अन्य व्यक्ति ने लिखा कि पानी मुक्त होली, पटाखा मुक्त दीवाली, दहीहांडी मुक्त जन्माष्टमी, दूध मुक्त शिवरात्रि, सेकुलरों ने हमें सिखाया। अब बारी है बकरा मुक्त बकरीद की। तो क्या सेकुलर गैंग बकरीबाजों को समझाएंगे?