रांची। आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा की जन्मस्थली खूंटी जिले के उलिहातु में आदिवासी पारसनाथ पहाड़ी को बचाने के अपने आंदोलन के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए 30 जनवरी को 1 दिन का उपवास करेंगे। आदवासी संस्थाओं के संयुक्त फोरम के एक सदस्य ने यह जानकारी दी। मांग पूरी नहीं होने पर उन्होंने उग्र आंदोलन की चेतावनी भी दी।
झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के सैकड़ों आदिवासियों ने पहाड़ी क्षेत्र में पारंपरिक हथियार लेकर और ढोल नगाड़े बजाकर प्रदर्शन किया। 'झारखंड बचाओ मोर्चा' के एक सदस्य ने मंगलवार को कहा कि मरंग बुरु (पारसनाथ) झारखंड के आदिवासियों का जन्मसिद्ध अधिकार है और दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं कर सकती है। आदिवासी अपने आंदोलन के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए 30 जनवरी को खूंटी के उलिहातु में 1 दिन का उपवास करेंगे, जो उनके नेता बिरसा मुंडा की जन्मस्थली है।
जैनियों के विरोध के बाद पारसनाथ पहाड़ियों में पर्यटन को बढ़ावा देने के झारखंड सरकार के कदम पर केंद्र ने रोक लगा दी थी लेकिन अब आदिवासी भी इस जमीन पर दावा करते हुए इसे जैनियों से मुक्त करने की मांग को लेकर मैदान में कूद पड़े हैं। देश की सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति समुदाय में से एक संथाल जनजाति की झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है और ये प्रकृति की पूजा करते हैं।(भाषा)