कश्मीर में व्हाट्सएप ग्रुपों पर शुरू हुआ क्रैकडाउन

सुरेश एस डुग्गर
श्रीनगर। क्रिकेट खेलने का शौकीन बिलाल अहमद (बदला हुआ नाम) परेशान है। उसकी परेशानी उन स्कूली अभिभावकों, छात्रों और व्यापारियों की ही तरह की हैँ जो उस सरकारी आदेश से सकते में हैं जिसके तहत जम्मू कश्मीर में व्हाट्सएप ग्रुप संचालकों को अपने-अपने ग्रुपों के पंजीकरण के लिए कहा गया है।
 
बिलाल के ग्रुप में करीब 25 लोग हैं। सभी क्रिकेट खेलते हैं। क्रिकेट की जानकारियों को व्हाट्सएप से एक-दूसरे को शेयर करते हैं और कभी-कभार आसपास होने वाली कन्फर्म और अनकन्फर्म खबरों का भी आदान-प्रदान उनके ग्रुप में होता है। उनकी दिक्कत अब यह है कि क्या सरकारी आदेश उन पर भी लागू होता है?
 
उनकी चिंता इसलिए बढ़ गई है क्योंकि राज्य सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी पर पहरा बिठाते हुए व्हाट्सएप्प ग्रुप संचालकों पर नकेल कसनी आरंभ की है। मजेदार बात यह है कि खबरों के ग्रुप चलाने वाले तो अभी भी बेखबर हैं पर बिलाल जैसे लोग परेशान हैं और उनकी कोई मदद भी नहीं कर रहा है।
 
ऐसा ही हाल उन कुछ छात्रों का भी है जो अपनी कक्षा के सभी दोस्तों का एक व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाकर होमवर्क और अन्य स्कूली गतिविधियों संबंधी जानकारियों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। अभिभावकों का भी और व्यापारियों की भी यही हाल है।
 
दरअसल यह सरकारी आदेश उस समय आया था जब कश्मीर में होने वाली मौतों तथा हालात के लिए पैदा हुई परिस्थितियों का दोष सरकार तथा नागरिक प्रशासन ने इन व्हाट्सएप ग्रुपों पर मढ़ा था। हालांकि अभी तक यह साबित नहीं हो पाया है कि सारे हालात के लिए व्हाट्सएप पर न्यूज ग्रुप चलाने वाले ही दोषी थे लेकिन इतना जरूर है कि अब सरकार ने ऐसे न्यूज ग्रुपों से कड़ाई से निपटना शुरू किया तो गेहूं के साथ घुन भी पिसने लगा है।
 
सरकारी आदेश के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में चल रहे सिर्फ न्यूज ग्रुपों को पंजीकरण करवाने की आवश्यकता है पर अन्य ग्रुपों को भी ऐसे दिशा-निर्देश दिए जाने से लोग परेशानी की हालत में हैं। सबसे ज्यादा परेशानी उनको है जो जानकारियां शेयर करने के लिए ग्रुप बनाए हुए हैं। पर कभी-कभार उन पर खबरें भी शेयर कर रहे हैं। ऐसे ग्रुपों के संचालकों को डर इस बात का है कि कहीं पुलिस उन पर कानूनी कार्रवाई न करे। इसी डर से अब कई ग्रुप बंद भी होने लगे हैं और कई ग्रुपों पर कई-कई दिनों तक संदेशों का आदान-प्रदान भी नहीं हो रहा है।
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