प्रिंसिपल सुपिंदर कौर कश्मीर ही नहीं पूरे भारत के लिए इंसानियत का एक ऐसा उदाहरण हैं, जिससे आतंकी सबसे ज्यादा डरते थे। वे अपने काम के लिए, इंसानियत के लिए बेहद समर्पित शिक्षिका थीं। उन्होंने एक बार एक मुस्लिम लड़की की पीड़ा सुनकर उसकी पूरी पढ़ाई का खर्च उठा लिया। यही नहीं, वो अपनी आधी सैलेरी भी बच्चों और जरूरतमंदों के लिए इस्तेमाल करती थीं।
उनके पड़ोसी और मुंहबोले भाई शौकत अहमद डार कहते हैं कि सुपिंदर से भले ही हमारा खून का रिश्ता नहीं रहा है, लेकिन वह मेरे परिवार की सदस्य थीं। उन्होंने बताया कि छानापोरा हायर सेकंडरी स्कूल में पढ़ने वाली एक अनाथ छात्रा का खर्च सुपिंदर उठाती थीं।
छात्रा पहले मौसी के यहां रहकर पढ़ाई कर रही थी, लेकिन मौसी की शादी होने के बाद उसका कोई सहारा नहीं बचा, जब इसकी जानकारी सुपिंदर को लगी तो वह छात्रा की अभिभावक बन गईं।