जम्मू। आपने न ही ऐसा कहीं देखा होगा और न ही कहीं सुना होगा कि बच्चों को सरकारी स्कूल तक लाने की खातिर एक अध्यापक घोड़े की सवारी कर, दुर्गम इलाकों में आतंकी खतरे के बीच शिक्षा की लौ जगाने का प्रयास कर रहा हो। ऐसा भी नहीं है कि इस अध्यापक को कामयाबी न मिली हो बल्कि वह इसके लिए पुरस्कृत भी हो चुका है।
दरअसल, कोरोना लॉकडाउन के बाद राजौरी के पद्दर क्षेत्र में स्थित मिडिल स्कूल खुल तो गया था, लेकिन बच्चे नहीं आ रहे थे। यह स्कूल राजौरी व रियासी जिले की सीमा पर अंतिम स्कूल है। इसके बाद रियासी जिले का क्षेत्र शुरू हो जाता है। 10 किलोमीटर के क्षेत्र से बच्चे इस स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं। इस स्कूल में पहुंचने के लिए सड़क का कोई भी साधन नहीं है। बच्चों के साथ अध्यापकों को भी लगभग 5 किमी पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता है। लॉकडाउन से पहले यहां 50 बच्चे पढ़ते थे, अब इसके आधे ही आ रहे हैं।
इसने अध्यापक हरनाम सिंह को चिंतित कर दिया था। हरनाम सिंह के बकौल, लॉकडाउन के बाद जैसे ही स्कूल खुले, विद्यार्थियों की संख्या काफी कम हो गई। कई बार संदेश भी भेजे, लेकिन इसका भी कोई असर नहीं हुआ। तब उसने ठाना कुछ भी हो जो बच्चों को फिर स्कूल लाना होगा। दूरदराज का इलाका व सड़क न होने के कारण हरनाम सिंह ने सोचा कि अगर पैदल निकला तो बहुत समय लग जाएगा। इस गांव के एक व्यक्ति के पास घोड़ा था जिसे मांगने पर उसे दे दिया गया। इसके बाद छोटा लाउड स्पीकर लेकर लोगों में शिक्षा की अलख जगाने निकल पड़ा। यह हरनाम सिंह की खुशकिस्मती थी कि आतंकवादग्रस्त इलाका होने के बावजूद वह जिस भी घर में गया, लोगों ने उसकी बात को ध्यान से सुना।
हरनाम सुबह 6 बजे अपने घर से घोड़े पर सवार होकर निकल जाते हैं और उसके बाद वह दस बजे अपने स्कूल पहुंच जाते हैं। हरनाम सिंह के बकौल, हर रोज दस से 12 किलोमीटर का सफर घोड़े पर हो जाता है। लोग जागरूक हो रहे हैं और स्कूल आकर बच्चों के नाम लिखवा रहे हैं, ताकि नई कक्षाओं में उन्हें दाखिला मिल सके। इसके साथ साथ जो बच्चे स्कूल नहीं आ रहे थे वह भी स्कूल आना शुरू हो चुके है।
यह कोई प्रथम बार नहीं है कि हरनाम सिंह ने ऐसा प्रयोग किया हो बल्कि वे बच्चों को पढ़ाने के लिए नए-नए प्रयोग करते है। वह कहते हैं कि हमारे दौर में अध्यापक डंडे से बच्चों को पढ़ाते थे, लेकिन अब वह दौर नहीं है। अब दोस्ताना माहौल में बच्चों को पढ़ाया जाए तो बच्चे बेहतर समझते है। इसलिए मैं शिक्षा के कई प्रयोग करता रहता हूं।