कौन हैं मनोज जरांगे पाटिल, क्यों हिंसक हो रहा है मराठा आरक्षण आंदोलन

मंगलवार, 31 अक्टूबर 2023 (17:01 IST)
Maratha Reservation :  आरक्षण को लेकर इस समय महाराष्ट्र हिंसा की आग में झुलस रहा है। मराठा समुदाय के सदस्य अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के तहत सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर राज्य के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन कर रहे हैं। इस विरोध-प्रदर्शन ने हिंसक रूप रूप ले लिया है। महाराष्ट्र के धाराशिव और बीड जिले में कर्फ्यू लगा दिया गया है। सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल आरक्षण की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे हुए थे। मराठा आरक्षण क्यों हो रहा है हिंसक और क्या हैं इनकी मांग। कौन हैं आंदोलन की अगुवाई करने वाले मनोज जरांगे पाटिल।
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चार दशक से भी अधिक समय से मांग : मराठों के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग चार दशक से भी अधिक समय से उठ रही है। 2016 के बाद से, एमकेएम के नेतृत्व में कई संगठनों ने आरक्षण की मांग को लेकर राज्य भर में कई आंदोलनों का नेतृत्व किया है। अगस्त 2016-17 से, संस्था ने 58 मौन रैलियां की हैं। 2017-18 के बीच समुदाय ने कई उग्र विरोध-प्रदर्शन किए। कुछ लोगों ने आत्महत्या भी कर ली।
 
कौन हैं मनोज जारांगे पाटिल : 40 साल के मनोज जारांगे पाटिल मूलरूप से बीड के रहने वाले हैं। रोजी-रोटी के चक्कर में उन्हें जालना के अंबाद आना पड़ा था। यहां उन्होंने एक होटल में काम करके जैसे-तैसे गुजर-बसर किया। हालांकि कुछ समय बाद पाटील ने कांग्रेस के कार्यकर्ता के रूप में अपने जीवन के नए अध्याय की शुरुआत की लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें पार्टी छोड़ दिया।
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पाटील ने 'शिवबा संगठन' नाम का एक संगठन बनाया। यह संगठन मराठा समुदाय के सशक्तिकरण के लिए काम करता था। मनोज जरांगे पाटील मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करने वाले विभिन्न राज्य के राजनेताओं से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल का भी हिस्सा रहे हैं। जरांगे 25 अक्टूबर से जालना जिले के अपने पैतृक अंतरवली सराती गांव में अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं।
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क्या है जरांगे की मांग : मनोज जरांगे पाटिल की मांग है कि सरकार सभी मराठों को कुनबी (मराठा की एक उपजाति) माने ताकि उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण का लाभ मिले। कुनबी एक कृषक समुदाय है और यह समुदाय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत आरक्षण पाने का पहले से ही हकदार है।  
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भूख हड़ताल पर बैठे मनोज के मुताबिक मराठा और कुनबी एक ही हैं जबकि संभाजी ब्रिगेड के प्रवीण गायकवाड़ ने कहा था कि मराठा कोई जाति नहीं है। राष्ट्रगान में मराठा को भौगोलिक इकाई के तौर पर बताया गया है। जो लोग महाराष्ट्र में रहते हैं, वे ही मराठा हैं। आंदोलनकारियों का कहना है कि जब तक मराठियों को कुनबी जाति का सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। 
ओबीसी महासंघ का विरोध : राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र यानी ओबीसी कोटे से आरक्षण देने का कड़ा विरोध करता है। राज्य में ओबीसी नेताओं ने भी इसका विरोध किया है। इसके चलते राज्य के मराठा और ओबीसी समुदाय आरक्षण के मुद्दे पर एक-दूसरे की मांगों के खिलाफ खड़े हो गए हैं।
 
अब तक क्या हुआ : महाराष्ट्र सरकार ने साल 2018 में 16 फीसदी मराठा आरक्षण पर मुहर लगाई थी। साल 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे घटाकर सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी और शैक्षणिक संस्थानों में 12 फीसदी कर दिया।  मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान के उल्लंघन के लिए मराठा समुदाय को आरक्षण की मंजूरी देने वाले महाराष्ट्र के सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2018 को रद्द कर दिया था।
क्या है सरकार का पक्ष : मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ ‘संतोषजनक’ चर्चा के बाद जरांगे ने पानी पीना शुरू कर दिया है। जरांगे ने 25 अक्टूबर को दूसरी बार अनशन की शुरुआत की थी।

इससे पूर्व उन्होंने पिछले महीने अनशन किया था लेकिन सरकार के आश्वासन के बाद उन्होंने अपना अनशन समाप्त कर दिया था। सरकार ने कहा था कि मराठवाड़ा क्षेत्र के मराठाओं को उस दौरान के जरूरी दस्तावेज दिखाने पर कुनबी जाति प्रमाणपत्र दिया जाएगा, जब यह क्षेत्र निजाम के राज्य का हिस्सा था।

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