विवाह के बदलते-बिगड़ते तौर-तरीकों के बीच दम तोड़ते संस्कार

डिणींग डिणींग जैसे ही ‘नोटिफिकेशन अलर्ट’ सुनाई दिया मैंने फोन देखा। उसमें दूर के किसी रिश्तेदार के बेटे ने अपनी यूट्यूब लिंक शेयर की थी। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ! मुझे क्यों भेजा? देखा तो उसमें उनके प्रिवेडिंग से लेकर हनीमून तक के फोटो-वीडियो का संग्रह बड़ी बेशर्मी के साथ फिल्माया गया था। अरे जब शादी का निमंत्रण नहीं, रिश्तों में वर्षों से आवा-जाही नहीं। तीज-त्योहार पर कोई मेल-मुलाकात नहीं फिर ये बेहूदा प्रदर्शन मुझे क्यों भेजा? अपनी आधुनिकता का ढोल पीटने? किसे भेजना, किसे नहीं का भी होश नहीं? अजीब बेहूदगी का चलन बन पड़ा है ये तो? 
 
विवाह वास्तव में एक जुआ की तरह है, यदि दांव सही पड़ गया तो जीवन स्वर्ग, अन्यथा नरक के सभी रास्ते यहीं खुल जाते हैं। शादी को दूसरा जन्म भी माना जाता है क्योंकि इसके बाद वर-वधू सहित दोनों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। इसलिए विवाह के संबंध में कई महत्वपूर्ण सावधानियां रखना जरूरी है। विवाह =वि+वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है-विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना.. . पर इससे इन्हें क्या लेना देना?
 
वेस्टर्न की नकल कर हिंदू दूल्हा-दुल्हन शैम्पेन की बॉटल खोल रहे हैं, आलिंगन के दृश्य दे रहे हैं या मंडप में किस कर रहे हैं। हिन्दू दुल्हन को कभी सुट्टा लगाते, चिलम फूंकता दिखाते हैं, कभी हाथ में शराब का गिलास पकड़ा देते हैं, कभी नीचे से लहंगा गायब कर शॉर्ट्स पहना देते हैं। अब इवेंट्स मैनेजमेंट, प्री वेडिंग शूट जैसे चोंचलों की आड़ में रतिक्रिया का प्रदर्शन छोड़ हर तरह की अश्लीलता का सरेआम प्रदर्शन हो रहा है। विवाह अब दैहिक सुख की संविदा और एक निष्प्राण अनुबंध बन चला है। दुल्हन की ‘धुआंदार एंट्री’ के नाम पर उछलती कूदती दुल्हन एक मर्यादा तक ठीक है पर जब यही(अश्लील) नृत्य विवाह टूटने का कारण बन जाए तो शुभ तो नहीं ही है। 
 
पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। विवाह संस्कार हिन्दू धर्म संस्कारों में ‘त्रयोदश संस्कार’ है. हिन्दू धर्म में, सद्गृहस्थ की, परिवार निर्माण की जिम्मेदारी उठाने के योग्य शारीरिक, मानसिक परिपक्वता आ जाने पर युवक-युवतियों का विवाह संस्कार कराया जाता है। पर फूहड़ता का दिखावा इसे नहीं मानता। भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह कोई शारीरिक या सामाजिक अनुबन्ध मात्र नहीं हैं, दाम्पत्य को एक श्रेष्ठ आध्यात्मिक साधना का भी रूप दिया गया है। इसलिए कहा गया है ‘धन्यो गृहस्थाश्रमः’। 
 
वरमाला के समय होने वाली हरकतों के वीडियो तो सरे आम वायरल हुए हैं। बाजार भरा पड़ा है। दुल्हा-दुल्हन के मिठाई खिलाने के वीडियो तो सभी के मनोरंजन का साधन बने पड़े हैं। नए तरीकों के दिखावे से कई दुर्घटनाएं भी हुईं। पाणिग्रहण के समय होने वाली अभद्रता और ठिलवई भी समय समय पर देखने मिल रही है। लगन के समय बारात न पहुंचना, शराब पी कर दुल्हे, परिजनों का उत्पात मचाना, लड़कीवालों से बदतमीजी करना सब बहुत आम हो चला है। वर और कन्या की कुंडली में विद्यमान ग्रह-नक्षत्रों के मुताबिक विवाह अर्थात् लग्न का समय निकाला जाता है। जो विवाह का लग्न होता है यही युवक-युवती के परिणय बंधन में बंधने का मुहूर्त कहलाता है। शादियों में वर और कन्या के जीवन संग जुड़ने में घड़ी-लग्न का महत्वपूर्ण स्थान था। अब तो रिसेप्शन पर दुल्हा दुल्हन ही समय पर नहीं आते। मेहमान हलकान होते रहते हैं। ऐसे लोग मेरी नजर में “समयहंता” (टाइम किलर) के पाप के भागी होते हैं। 
 
अब अधिकतर शादी मजाक हो गई है। थोथी आधुनिकता का नंगा नाच। हम हमारे संस्कारों की धज्जियां उड़ाने वाले टीवी सीरियल, नौटंकी, फिल्मों और फिल्मी लोगों की शादियों से प्रभावित हो कर अपने पवित्र संस्कारों को नष्ट करने पर तुले हैं। यह ऐसा अंधानुसरण है जिसका परिणाम टूटते परिवारों और विवाह विच्छेद के बढ़ते प्रकरणों के रूप में सामने आने लगा है और इसके पीड़ित ही इसके अपराधी भी हैं। 
 
सनातन संस्कृति यानी हिंदू विवाह पद्धति में दुल्हन देवी स्वरुप लक्ष्मी है और दूल्हा विष्णु अवतार इस मान्यता को हम भूल चले हैं। विवाह एक गरिमामयी पवित्र बंधन और सोलह संस्कारों में सबसे प्रमुख संस्कार है यह भी भूल चले हैं। आए दिन विवाह टूटने की ऐसी कई वजहें पढऩे को मिलती हैं। अदालतें ऐसे मुकदमों से भरी पड़ी हैं। कहीं वर पक्ष तो कहीं वधु पक्ष शोषण झूठा मुकदमा दर्ज करा रहा है।हिंदूओं में विवाह को संस्कार माना गया है, जिसमें विवाह को जन्म-जन्म का रिश्ता कहा गया है लेकिन लगता है यह सब अतीत की बातें हैं, क्योंकि अब विवाह में शोषण भी दिखता है, हत्याएं भी होती है और एक-दूसरे को नीचा दिखाने का खेल भी चलता है।  
 
विवाह के लाभों में यौनतृप्ति, वंशवृद्धि, मैत्रीलाभ, साहचर्य सुख, मानसिक रुप से परिपक्वता, दीर्घायु, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति प्रमुख है। इसके अलावा समस्याओं से जूझने की शक्ति और प्रगाढ प्रेम संबध से परिवार में सुख-शांति मिलती है। इस प्रकार विवाह-संस्कार सारे समाज के एक सुव्यवस्थित तंत्र का स्तम्भ है। इसे जलील तरीके से प्रदर्शित करने की मानसिकता से बचने और गिरते संस्कृति मूल्यों को बचाने की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णयों की सख्त आवश्यकता है।  

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