वसुधा तिवारी
पिता, यह शब्द किसी परिचय का मोहताज नहीं है। पिताजी का साथ जीवन में ज्यादा तो नहीं रहा, लेकिन जितना भी रहा उस समय में पिता जी ने जीवन जीने के सभी तौर-तरीके सिखाए हैं।
पिता जी के साथ मित्र की तरह बैठना, उनसे बातें करना आज भी याद आता है। उनके साथ किसी भी बात पर विचार-विमर्श करना एवं उन विचारों से सही-गलत को समझना पिता जी ने बखूबी सिखाया है। पिता जी की सलाह को मानकर कोई भी काम करना एवं उन कामों में हमेशा सफल होना, आज भी पिताजी की याद दिलाता है।
आज भी, जब किसी बड़े काम को करना हो या जीवन संबंधी निर्णय लेना हो, तो अपने आप को असहाय महसूस करती हूं। अगर आज पिताजी होते तो किसी भी सलाह या निर्णय लेने के लिए किसी का सहारा नहीं लेना पड़ता। पिता का होना बच्चों के जीवन में एक सुरक्षा कवच जैसा होता है।
हर इंसान के जीवन में उसके पिता का होना बहुत आवश्यक है। पिता हाथ पकड़ कर चलना सिखाते हैं, पिता इंसानियत, संघर्ष एवं मुश्किल समय में लड़ना सिखाते हैं। दुनिया को देखने का नजरिया बताते हैं और परिस्थितियों में ढलना एवं लोगों को ढालना दोनों का तरीका सिखाते हैं। पिता जीवन में ऐसी ढाल के समान है जो विपत्ति रूपी बाणों को अपने बच्चों पर आने से रोक देते हैं।