उनकी शादी हुए अभी दो साल हो गए थे लेकिन रीमा को बार-बार एक बात खटकती थी कि ‘इस’ आदमी में उसने क्या खासियत देखी। रूप-रंग से अतिसाधारण और हमेशा अपनी दुनिया में लगा रहने वाले व्यक्ति के पास उसके लिए क्या था, जो उसने आशीष से शादी कर ली। शादी के पहले आशीष की रचनात्मकता, पेटिंग, फोटो और लेख जो उसे प्रभावित करते थे, अब रीमा के हिस्से का वक्त भी उससे छीन लेते थे। इन सभी बातों के कारण वह आशीष पर हमेशा झल्लाती रहती थी, लेकिन आशीष था कि उसकी नाराजगी को भी मुस्कुराकर टाल देता। इस बात में कोई शक नहीं कि रीमा और आशीष के बीच गहरा प्यार था। आज फिर रीमा नाराज थी। पिछले चार दिनों से आशीष और उसके बीच ठीक से कोई बात भी नहीं हुई थी और वो सिर्फ अपने काम में लगा रहता था। रचनात्मकता तो अच्छी थी, लेकिन पेट भरने के लिए भी कुछ चाहिए। आशीष की घर से बेरुखी और अपने संसार तक सिमटे रहना उसे नहीं भा रहा था। ‘तुम क्यों नहीं शादियों में फोटोग्राफी कर लेते हो। घर का खर्च भी चल जाएगा और तुम्हारे शौक भी पूरे हो जाएँगे’। रीमा ने प्यार से आशीष से कहा। आशीष ने उसकी बातों को तवज्जो दिए बिना कहा, ‘मेरे पास कहाँ फुर्सत है।’ ‘उस दिन कुछ कम लिख लेना’। आशीष की बेरुखी से रीमा गुस्से में आ गई। ‘घर में पैसे नहीं होंगे तो लिखने के लिए कागज और पेटिंग के लिए रंग भी नहीं आ सकेंगे।’
शादी के पहले आशीष की रचनात्मकता, पेटिंग, फोटो और लेख जो उसे प्रभावित करते थे, अब रीमा के हिस्से का वक्त भी उससे छीन लेते थे। इन सभी बातों के कारण वह आशीष पर हमेशा झल्लाती थी, लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि रीमा और आशीष के बीच गहरा प्यार था।
‘कहाँ वक्त..., आज मेरे काम को चाहे क्यों न पहचान मिले, वो दिन भी आएगा, जब मेरी कहानियाँ पढ़ी जाएँगी और मेरे काम को सराहना भी मिलेगी’। आशीष ने हौले से रीमा को पास लाते हुए कहा। ‘मुझे कुछ नहीं पता। ये काम तुम्हें मेरे लिए करना पड़ेगा।’ रीमा गुस्से में आशीष को झिड़कते हुए बोली। ‘नहीं’। आशीष चिल्लाया। और दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई।
एक दिन अबोला बीता। रीमा ने घर का सारा सामान ठीक करने में दिन बिताया। थोड़ा शोर होता रहा। रीमा का दिल भी बहला। आशीष अभी निश्चिंत था। उसके पास कुछ पैसे थे। इससे कुछ दिनों तक तो खर्च चल ही सकता था। बहरहाल दूसरा दिन भी बीता। आशीष को रीमा और रीमा को आशीष से पहल की उम्मीद होने लगी। बात खत्म हो गई और बात की पूछ रह गई। तीसरे दिन तक सारे पैसे भी खत्म हो गए और रीमा का गुस्सा और भी तेज हो गया। आशीष के ‘निकम्मेपन’ पर उसे बहुत गुस्सा आ रहा है। रात में बिस्तर पर एक दीवार को देखते हुए आशीष और दूसरी दीवार की ओर मुँह करके दोनों लेटे थे। आँखों में नींद नहीं थी और दिल में चैन नहीं। सब्र का बाँध अब टूट रहा था, लेकिन अहम बहुत बुरी चीज होती है, दिल का कहा भी नहीं मानता। खैर! सबसे पहले आशीष का बाँध टूटा। ‘मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ’ ‘तुम्हारी बकवास सुनने के लिए मेरे पास फुर्सत नहीं है। मुझे नींद आ रही है।’ रीमा ने अनमने मन से कहा। ‘मुझे अपनी शादी के बारे में बात करनी है।... मुझे लगता है कि हमें तलाक ले लेना चाहिए।’ आशीष ने एक बार में ही पूरा बोल दिया। रीमा को ऐसा लगा कि मानो किसी ने कान में पारा डाल दिया हो। एक बार के लिए पूरी धरती ही घूम गई। अभी वो कुछ बोलती कि आशीष ने कहा, ‘मैंने लड़की भी पसंद कर ली है।’ कहने के साथ ही शर्ट के भीतर रखी एक फोटो निकाली। रीमा की आँखों में आँसू आ आए। हिम्मत जुटकर बोली- ‘बात यहाँ तक पहुँच गई और मुझे पता भी नहीं चला।’ रीमा ने मासूमियत से पूछा, ‘उसे खिलाओगे क्या...’। आशीष को लगा उसकी मुराद पूरी हो गई। रीमा की बात का जवाब न देते हुए उसने कहा, ‘उसे मेरा लिखना, पेटिंग करना और फोटोग्राफी बहुत पसंद है। मेरी तारीफ भी करती है।’ रीमा को काटो तो खून नहीं। रुआँसी होकर औधे मुँह लेट गई। आशीष ने फोटो उसकी तकिए के पास रख दिया। रीमा ने न चाहते हुए भी फोटो की ओर ऑंखें घुमाई ताकि पता चले कि वो ‘चुड़ैल’ कौन है। ‘अरे, ये तो मेरी पहली फोटो है, जो तुमने खींची थी। कितनी सुंदर फोटो है, है ना।’ रीमा का गुस्सा पल भर में छूमंतर हो गया। आशीष ने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा कि मुझ जैसे निकम्मे से क्या कोई और लड़की शादी कर सकती है। रीमा ने आशीष के सीने में अपनी गर्दन छुपाते हुए कहा- ‘कभी नहीं।’