प्रेतबाधा वगैरह दूर करने हेतु

हेतु- प्रेतबाधा वगैरह दूर हो जाती है।

स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्‌ नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता ।
सर्वादिशो दधति भानि सहस्र रश्मिं प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालम्‌ ॥ (22)

सैकड़ों स्त्रियाँ कई पुत्रों का प्रसव करती हैं... पर तुम जैसे पुत्र को और किसी ने जन्म नहीं दिया। सभी दिशाएँ चाहे तारे-नक्षत्र वगैरह को धारण करें... पर सूरज का आविर्भाव तो पूरब की कोख से ही होता है!

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो आगासगामिणं ।

मंत्र- ॐ नमः श्री वीरेहिं जृम्भय जृम्भय मोहय मोहय स्तम्भय स्तम्भय अवधारणं कुरु कुरु स्वाहा।

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