प्रणांत कष्ट दूर करने हेतु

हेतु- प्रणांत कष्ट दूर हो जाते हैं... रक्षण मिलता है

तुभ्यं नमस्त्रिनभुवनार्तिहराय नाथ। तुभ्यं नम: क्षिति-तलामल भूषणाय।
तुभ्यं नमस्त्रिजगत: परमेश्वराय। तुभ्यंम नमो जिन ! भवोदधि- शोषणाय ।। (26)

तीन लोक के दुःख विदारक, तुम्हें नमन हो!
इस धरती के हे आभूषण, तुम्हें नमन हो!
तीन जगत के हे परमेश्वर, तुम्हें नमन हो!
भवसागर के शोषक जिनवर, तुम्हें नमन हो!

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो दित्ततवाणं ।

मंत्र- ॐ नमो भगवति ऊ ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रूँ ह्रूँ परजनशांतिव्यवहारे जयं कुरु कुरु स्वाहा।

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