शत्रु का डर दूर करने हेतु

हेतु- शत्रु का डर दूर होता है।

को विस्मयोऽत्र यदि नाम गुणैरशेषैः त्वं संश्रितो निरवकाशतया मुनीश ।
दोषैरुपात्त विविधाश्रय जात गर्वैः स्वप्नान्तरेऽपि न कदाचिदपीक्षितोऽसि ॥ (27)

आप में गुणों का समूह इतना तो खचाखच भरा है कि अब भाँति-भाँति का रूप लेने वाले अवगुण बेचारे सपने में भी आपकी ओर नजर नहीं डाल पाते! इसमें भला आश्चर्य क्या है?

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो तत्ततवाणं ।

मंत्र- ॐ नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी चक्रेणानुकूल साधय साधय शत्रुन उन्मूलय उन्मूलय स्वाहा।

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