अखिल भारतीय वंशावली संरक्षण एवं संवर्धन संस्थान, जयपुर के संस्थापक रामप्रकाश के अनुसार समाज के हर व्यक्ति एवं वंशों का हजारों साल पुराना सच्चा इतिहास संजोकर रखने की परंपरा अंग्रेज एवं मुगल शासनकाल में तो उपेक्षा की शिकार रही, लेकिन देश को आजादी मिलने के बाद भी इसे उचित सम्मान एवं प्रोत्साहन का अभाव रहा है।
उन्होंने बताया कि वंशावली लेखन के कार्य में लगे समुदायों को अलग-अलग राज्यों में अनेक नामों से जाना जाता है। इनमें मुख्य रूप से राव, बड़वा, भाट, बस्र भट्ट, बारोट, जागा, याज्ञिक, तीर्थ पुरोहित, पण्डे, रानीमंगा, हेलवा पंजीकार एवं राजवंश नाम शामिल हैं।