ब्रज की होली का आनंद

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हो हो हो, होरी है। यह ब्रज की होरी है। यदि आपको होरी खेलने का मजा लेना है, तो आप भी फरीदाबाद के मंदिरों में फूलों से हो रही होरी को खेल सकते हैं। फूलों की होरी का सुरूर इस नगरी में तेजी से बढ़ रहा है। लोग फूलों की होरी मनाने के लिए उतावले हो रहे हैं।

फूलों की होरी खेलने का जन्म ब्रज से ही हुआ है। ब्रज में फूलों की होरी पर कलाकार लोकगीत प्रस्तुत करते हैं। इसमें कलाकार अपनी कला के द्वारा भगवान राधा-कृष्ण के रूप रख-रख कर नृत्य करते हैं। फूलों की होरी ब्रजवासी बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं, जो ब्रजवासियों को भगवान की भक्ति के रस का आनंद भी दिलाती है। इसलिए इस फूलों की होरी को ब्रजवासी सबसे ज्यादा पसंद करते हैं लेकिन ब्रजवासियों ने फूलों की होरी खेलने के लिए औद्योगिक नगरी में एक संस्था बनाई है। इस संस्था के माध्यम से ही मंदिरों में होरी का कार्यक्रम रखा जाता है। जहाँ सभी ब्रजवासी एकत्रित होकर होरी के लोकगीतों को गाते हैं और नाचकर फूलों की होरी का मजा लेते हैं।

यहाँ फूलों की होरी खेलने की शुरुआत मुनीराज ने की लेकिन आज ब्रज फूलों की होरी लोगों को बहुत भा रही है। इसमें पास के क्षेत्रों के लोग फूलों की होरी खेलने आ रहे हैं। जो लोगों को बेहद पसंदीदा बनी हुई है। इस होरी में महिलाएँ ही नहीं अपितु सभी ब्रज होरी का भरपूर आनंद उठा रहे हैं। जबकि फूलों की होरी खेलने के लिए लोग अपने संगे संबंधियों और मित्रों को समय निकालकर बुलाकर ला रहे हैं और जमकर हो हो हो होरी है, ब्रज की होरी है का पूरे जोश के साथ आनंद ले रहे हैं।

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इसमें ब्रज की होरी को बढ़ावा देने के लिए ब्रजवासियों ने नगरी को ही ब्रज बना रखा है और हो हो हो, होरी है ब्रज की होरी है। फूलों की होरी है जैसे लोकगीत साजे-बाजे के साथ गाकर सुनाते हैं, जो लोगों को ब्रज होरी खेलने के लिए बेहद आकर्षित कर रहे हैं। यह ब्रज होरी 13 से ही मंदिरों में शुरू हो गई है। जो निरंतर मंदिरों में खेली जा रही है।

इस कार्यक्रम में ब्रजवासियों ने लोकगीत गाकर लोगों को होरी सुनाई। ब्रजवासियों ने लोकगीत में सुनाया कि

चलो आईयो रे होरी के खिलार नहीं
तो मेरे मन की रह जाएगी।
मन की मन में रह जाएगी,

मेरी चूंदरी कोरी रह जाएगी
और छैला देखे बाट अटारी में,
कब गोरी आवेगी।

रसिया बैठे आस लगाई,
गोरी ना दे रही दिखाई।
डाले रात इंधारी में,
कब गौरी आवेगी।

इसके अलावा और कई लोकगीत गाकर होरी मनाई जा रही है। जबकि लोकगीतों पर महिलाओं ने भूरपूर आनंद लेने के लिए भी कोई कसर नहीं छोड़ी। महिलाओं ने होरी खेलते समय अनेक रूप धरे। इसमें महिलाओं ने राधा-कृष्ण और सखी के रूप बदल-बदल कर नृत्य किए। ब्रज होरी रंग के खिलाफ रहने वाले लोगों को बेहद पसंद आ रही है, लेकिन फूलों की होरी खेलने का चलन कदर पाँव पसार रहा कि जिसे देखो वह ब्रज के फूलों की होरी खेल रहा है।

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