होली के दूसरे दिन से ही मारवाड़ी घरों में गनगौर की पूजा शुरू हो गई। यह पूजा पूरे 18 दिनों तक चलेगी और हर रोज घर की महिलाएं भजन-कीर्तन कर भगवान शिव और पार्वती की सेवा करेगीं।
8 मार्च को होली दहन के साथ ही शहर में गनगौर पूजा की शुरू हो गई है। यह पूजा विशेष रूप से मारवाड़ी परिवारों में की जाती है। इस दौरान घर की महिलाएं बालू, मिट्टी या होली की राख से बने शिव और पार्वती की मूर्तियां बनाकर विधि-विधान से पूजा अर्चना करतीं है। गनगौर पूजा का यह सिलसिला पूरे 18 दिनों तक चलेगी। इसके बाद इसका विधिवत विसर्जन किया जाएगा।
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शास्त्रीय मान्यता के अनुसार गनगौर पूजा भारतीय संस्कृति में भगवान शिव और पार्वती का ही पूजन माना जाता है। इसमें अविवाहित युवतियां योग्य वर पाने और विवाहित महिलाएं सौभाग्यवती बने रहने की कामना से पूजा करती हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस पूजा में बालू से आठ-दस वर्ष के बालक-बालिकाओं की मूर्तियां बनाई जाती हैं, जिसमें बालक को वीरोचित वेष में और बालिका को स्त्री वेष में सोलह श्रृंगार कर चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तक नियमित पूजा अर्चना की जाती है। अब शिव-पार्वती की प्रतिमा बनाकर पूजा-अर्चना का दौर शुरू हो गया है, जो 26 मार्च तक जारी रहेगा।
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शास्त्रों के अनुसार दक्ष द्वारा शिव का अपमान न सह पाने के कारण सती अपने शरीर को अग्नि के हवाले कर दिया था। इसके बाद हिमालय के घर जन्म लेकर पुनः भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की।
सती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उनसे पुनः विवाह करते हैं। इसके बाद से ही भारतीय संस्कृति में गनगौर पूजा करने की परंपरा शुरू हुई।