शास्त्रों में कहा गया है कि जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्यता तथा सुख-सौभाग्य की वृद्धि के लिए अनेक प्रयास किए, उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म लेना निरर्थक होता है। इसे उतारना आवश्यक होता है।
वर्षभर में एक बार अर्थात उनकी मृत्यु तिथि को जल, तिल, जौ, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध संपन्न करके और गौग्रास देकर एक, तीन या पांच ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से यह ऋण उतर जाता है।
अत: सरलता से साध्य होने वाले इस कार्य की हमें उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इसके लिए जिस मास की जिस तिथि को माता-पिता आदि का देहावसान हुआ हो, उस तिथि पर श्राद्ध आदि करने के अलावा आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में जब श्राद्ध लगे हों उसी तिथि को श्राद्ध, तर्पण, गौग्रास और ब्राह्मणों को भोजन कराना आवश्यक है। इससे पितृगण प्रसन्न होते हैं।