चाणक्य के अनुसार देश का मुखिया कैसा होना चाहिए?

बुधवार, 31 मई 2023 (18:00 IST)
Chanakya Neeti: राजनीति, धर्म और देश के संबंध में आचार्य चाणक्य की नीति आज भी प्रचलित और प्रासंगिक है। चाणक्य के अनुसार यदि देश का मुखीया सजग और शक्तिशाली विचारों का नहीं है तो देश का डूबना तय है। इतिहास में नीरो और घनानंद जैसे उदाहरण भी दिए जा सकते हैं। आधिनुक युग में तानाशाहों या लापरवाह नेताओं ने देश को बर्बाद किया है। आओ जानते हैं कि कैसा होना चाहिए देश का मुखिया।
 
1. शक्तिशाली होना चाहिए राष्‍ट्र प्रमुख : राजा शक्तिशाली होना चाहिए, तभी राष्ट्र उन्नति करता है। राजा की शक्ति के 3 प्रमुख स्रोत हैं- मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक। मानसिक शक्ति उसे सही निर्णय के लिए प्रेरित करती है, शारीरिक शक्ति युद्ध में वरीयता प्रदान करती है और आध्यात्मिक शक्ति उसे ऊर्जा देती है, प्रजाहित में काम करने की प्रेरणा देती है। कमजोर और विलासी प्रवृत्ति के राजा शक्तिशाली राजा से डरते हैं।
 
2. लोकप्रिय होना चाहिए राष्‍ट्र प्रमुख : जिस राजा को अधिकतर जनता चाहती है और उसके कार्यों की सराहना करती है उस राजा के देश में कभी भी विद्रोह नहीं फैला और युद्ध की स्थिति में जनता का सहयोग महत्वपूर्ण हो जाता है। लोकप्रिय राजा ही देश को सुरक्षित रख पाने में सक्षम होता है। चाणक्य कहते हैं कि राजा को कभी भी किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए। हर व्यक्ति आपके लिए महत्वपूर्ण होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति कभी भी आपके काम आ सकता है।
 
3. विस्तृत संपर्क रखने होना चाहिए राष्‍ट्र प्रमुख : चाणक्य ने अपनी विद्वता से मगध के सभी पड़ोसी राज्यों के राजाओं से संपर्क और राज्य में जनता से संबंध बढ़ा लिए थे जिसके चलते उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई थी। देश विदेश में उनके संपर्क थे। संपर्क और पर्सनल संबंधों का विस्तार ही आपको जहां शक्तिशाली और लोकप्रिय बनाता है वहीं वह समय पड़ने पर आपके काम भी आते हैं। 
 
5. षड़यंत्र से सत्ता हासिल करने वाला राष्‍ट्र प्रमुख नहीं होना चाहिए : जोड़तोड़, गठजोड़ की राजनीति करने वाला या षड़यंत्र से सत्ता हासिल करने वाला राजा खुद भी डूबता है और देश को भी डूबो देता है। जनता की शक्ति के दम पर राज्य को हासिल करने वाला राजा ही देशहित को सुरक्षित रख पाता है। विक्रमादित्य हो या चंद्रगुप्त मार्यो सभी को जनता का पूर्ण सहयोग था।
6. लक्ष्य की ओर बढ़ने वला राष्‍ट्र प्रमुख : कई लोग हैं जिनके लक्ष्य तो निर्धारित होते हैं परंतु वे उसकी ओर बढ़ने के लिए या कदम बढ़ाने के बारे में सिर्फ सोचते ही रहते हैं। चाणक्य कहते हैं कि आप जब तक अपने लक्ष्य की ओर कदम नहीं बढ़ाते हैं तब तक लक्ष्य भी सोया ही रहेगा। शक्ति बटोरने के बाद लक्ष्य की ओर पहला कदम बढ़ाना राजा का कर्तव्य होना चाहिए।
 
7. राष्‍ट्र प्रमुख के सलाहकार : अगर शासन में मंत्री, पुरोहित या सलाहकार अपने कर्तव्यों को ठीक से पूरा नहीं करते हैं और राजा को सही-गलत कामों की जानकारी नहीं देते हैं, उचित सुझाव नहीं देते हैं तो राजा के गलत कामों के लिए पुरोहित, सलाहकार और मंत्री ही जिम्मेदार होते हैं। इन लोगों का कर्तव्य है कि वे राजा को सही सलाह दें और गलत काम करने से रोकना चाहिए। राजा को भी चाहिए कि वह चाटुकारों और चापलूसों से दूर रहकर कड़वी सलाह देने वालों की सुनें।
 
8. दंडनायक होना चाहिए राष्‍ट्र प्रमुख : ये चाणक्य नीति के छठे अध्याय का दसवां श्लोक है। इस श्लोक के अनुसार अगर किसी राज्य या देश की जनता कोई गलत काम करती है तो उसका फल शासन को या उस देश के राजा को भोगना पड़ता है। इसीलिए राजा या शासन की जिम्मेदारी होती है कि वह प्रजा या जनता को कोई गलत काम न करने दें। ऐसे में प्राजा के लिए कड़े दंड का प्रावधान होना चाहिए। चाणक्य कहते हैं कि अपने राज्य की रक्षा करने का दायित्व राजा का होता है। एक राजा तभी अपने राज्य की रक्षा करने में सक्षम हो सकता है, जब उसकी दंडनीति निर्दोष हो। दंड नीति से ही प्रजा की रक्षा हो सकती है।
 
यदि प्रजा राष्ट्रहित को नहीं समझती है और अपने इतिहास को नहीं जानती है तो वह अपने राष्ट्र को डूबो देती है। प्रजा भीड़तंत्र का हिस्सा नहीं होना चाहिए। प्रजा को ऐसे राजा का साथ देने चाहिए जो राष्ट्रहित में कार्य कर रहा है और प्रजा को राष्ट्र के नियम और कानून को मानते हुए उसे भी राष्ट्र रक्षा और विकास में योगदान देना चाहिए।
 
9. राष्‍ट्र प्रमुख और जनता के संबंध : चाणक्य यह भी कहते हैं कि प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है और प्रजा की भलाई में उसकी भलाई। राजा को जो अच्छा लगे वह हितकर नहीं है बल्कि हितकर वह है जो प्रजा को अच्छा लगे। राजा कितना भी शक्तिशाली और पराक्रमी हो राजा और जनता के बीच पिता और पुत्र, भाई और भाई, दोस्त और दोस्त और समानता का व्यवहार होना चाहिए।
 
10. शत्रुओं के साथ राष्‍ट्र प्रमुख का व्यवहार कैसा होना चाहिए : चाणक्य कहते हैं कि ऋण, शत्रु और रोग को समय रहते ही समाप्त कर देना चाहिए। जब तक शरीर स्वस्थ और आपके नियंत्रण में है, उस समय आत्मरक्षा और आत्म साक्षात्कार के लिए उपाय अवश्य ही कर लेना चाहिए, क्योंकि असुरक्षा में घिरने या मृत्यु के पश्चात कोई कुछ भी नहीं कर सकता। अत: शत्रु के साथ उसका व्यवहार शत्रुवत ही होना चाहिए। शांति एवं समझौता राष्ट्र को डूबो देता है।

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