बद्रीनाथ में शंख क्यों नहीं बताया जाता | Badrinath me shankh kyu nahi bajaya jata hai
मंदिर में बदरीनाथ की दाहिनी ओर कुबेर की मूर्ति भी है। उनके सामने उद्धवजी हैं तथा उत्सवमूर्ति है। उत्सवमूर्ति शीतकाल में बरफ जमने पर जोशीमठ में ले जाई जाती है। उद्धवजी के पास ही चरणपादुका है। बायीं ओर नर-नारायण की मूर्ति है। इनके समीप ही श्रीदेवी और भूदेवी है। भगवान विष्णु की प्रतिमा अपने आप धरती पर प्रकट हुई थी। बद्रीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।
पौराणिक मान्यता : पुराणों के अनुसार प्राचीनकाल में हिमालय क्षेत्र में असुरों का बड़ा आतंक था। वो इतना उत्पात मचाते थे कि ऋषि-मुनि न तो पूजा कर पाते थे और न ही ध्यान साधना। न मंदिर में और न आश्रम या गुफा में। ये असुर ऋषि मुनियों को खा जाते थे। असुरों के इस उत्पात को देखकर ऋषि अगस्त्य ने सहायता के लिए मां भगवती का आह्वान किया। जिसके बाद माता कुष्मांडा देवी के रूप में वह प्रकट हुईं और अपने त्रिशूल और कटार से सारे असुरों, राक्षसों और दानवों का वध कर दिया।
वैज्ञानिक कारण : वैज्ञानिकों के अनुसार विशेष आवृत्ति वाली ध्वनियां पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाती हैं। ऐसे में पहाड़ी इलाकों में भूक्षरण भी हो सकता है। ऐसे इलाकों में इस तरह की आवाजें नहीं करना चाहिए जिससे की भूस्खलन होगो। बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाने के पीछे का कारण यह भी है कि वहां का अधिकांश क्षेत्र बर्फ से ढका रहता है और शंख से निकली ध्वनि पहाड़ों से टकरा कर प्रतिध्वनि पैदा करती है। जिसकी वजह से बर्फ में दरार पड़ने व बर्फीले तूफान आने की आशंका रहती है।