Kedarnath Yatra
केदारनाथ और बद्रीनाथ में खूब विकास किया जा रहा है जबकि केदारनाथ की बाढ़ ने एक झटके में सारे विकास कार्य ध्वस्त कर दिए थे। क्या आने वाले समय में भी यही होने वाला है? पुराणों में छिपा है केदारनाथ और बद्रीनाथ का इतिहास और भविष्य। बद्रीनाथ चार बड़े धामों में से एक है। आओ जानते हैं दोनों ही तीर्थ स्थलों का इतिहास और भविष्य।
इतिहास
- बद्रीनाथ पहले भगवान शिव और पार्वती का निवास स्थान था। लेकिन जब विष्णु जी ने यह स्थान देखा तो इसे देखकर वे मंत्रमुग्थ जैसे हो गए और उन्होंने तब इस स्थान को अपना बनाने के लिए यहां पर बालरूप की लीला की और शिव एवं पार्वती जी से यह स्थान ले लिया।
- वर्तमान बद्रीनाथ के पहले आदि बद्रीनाथ तीर्थ स्थल हुआ करता था। इसे सबसे प्राचीन स्थान कहा जाता है जो उत्तराखंड के चमोली के कर्ण प्रयाग में स्थित है। यहां पर श्रीहरि विष्णु विराजमान है।
- केदारनाथ को जहां भगवान शंकर का आराम करने का स्थान माना गया है वहीं बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं।
- केदार घाटी में दो पहाड़ हैं- नर और नारायण पर्वत। विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है। उनके तप से प्रसन्न होकर केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे। दूसरी ओर बद्रीनाथ धाम है जहां भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। कहते हैं कि सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी।
- बद्रीनाथ का मंदिर यहां कब से है यह ठीक नहीं मालूम लेकिन जो मंदिर वर्तमान में हैं उसका निर्माण पन्द्रहवीं शताब्दी में रामानुजीय संप्रदाय के स्वामी बदराचार्य के कहने पर गढ़वाल के तत्कालीन नरेश ने कराया। मंदिर के बन जाने के बाद इंदौर की सुप्रसिद्ध महारानी अहिल्याबाई ने यहां स्वर्ण कलश और छत्री को चढ़ाया। अलकनंदा नदी तट पर स्थापित यह मंदिर 50 फीट ऊंचा है। भगवान के इस क्षेत्र में अनेक गुप्त एवं प्रकट तीर्थ माने जाते हैं।
- रामायण एवं महाभारतकाल से पूर्व भी केदार का अस्तित्व रहा, महर्षि वेदव्यास ने महाभारत के युद्ध में गोत्र हत्या एवं ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए पाण्डवों को केदार तीर्थ के दर्शन का उपदेश दिया था। उन्होंने कहा था कि ब्रह्मादि देवता भी शिव दर्शन के लिए केदार तीर्थ धाम की यात्रा करते हैं। आदि शंकराचार्य, विक्रमादित्य और राजा मिहिर भोज ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
- स्कंद पुराण में भगवान शंकर, माता पार्वती से कहते हैं, हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भूस्वर्ग के समान है।
भविष्य :
- पुराणों में हैं उल्लेख : पुराणों अनुसार भूकंप, जलप्रलय और सूखे के बाद गंगा लुप्त हो जाएगी और इसी गंगा की कथा के साथ जुड़ी है बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थस्थल की रोचक कहानी।
- भविष्य में नहीं होंगे बद्रीनाथ के दर्शन, क्योंकि माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।
- कहते हैं कि भविष्य में जब केदारनाथ और बद्रीनाथ लुप्त हो जाएंगे तब यही स्थान तीर्थ क्षेत्र होगा। यह स्थान भी चमोली में जोशीमठ के पास सुभैन तपोवन में स्थित है।
- यह भी मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल-दर-साल पतला होता जा रहा है। जिस दिन यह हाथ लुप्त हो जाएगा उस दिन ब्रद्री और केदारनाथ तीर्थ स्थल भी लुप्त होना प्रारंभ हो जाएंगे।
- चार धाम में से एक बद्रीनाथ के बारे में एक कहावत प्रचलित है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी'। अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुन: उदर यानी गर्भ में नहीं आना पड़ता है। मतलब दूसरी बार जन्म नहीं लेना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य को जीवन में कम से कम दो बार बद्रीनाथ की यात्रा जरूर करना चाहिए।