एक प्रसंग के अनुसार एक दिन एक युवक स्वामी विवेकानंद के पास आया। उसने कहा- मैं आपसे गीता पढ़ना चाहता हूं। स्वामीजी ने युवक को ध्यान से देखा और कहा- पहले छ: माह प्रतिदिन फुटबॉल खेलो, फिर आओ, तब मैं गीता पढ़ाऊंगा।
जो शरीर को स्वस्थ नहीं रखता, सशक्त-सजग नहीं रख सकता अर्थात् जो शरीर को नहीं संभाल पाया, वह गीताजी के विचारों को, अध्यात्म को कैसे संभाल सकेगा। उसे पचाने के लिए स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन ही चाहिए। गीता के अध्यात्म को अपने जीवन में कैसे उतार पाएगा?