गांधीजी ने कहा कि इस पवित्र नगरी में महान विद्यापीठ के प्रांगण में अपने देशवासियों से एक विदेशी भाषा में बोलना शर्म की बात है। समारोह में जिन लोगों ने गांधी से पूर्व अंग्रेजी में अपना भाषण पेश किया था, उन लोगों को शायद ही यह अनुभव था कि विदेशी भाषा में बोलना शर्म सरीखा है।
श्रोताओं ने कहा- नहीं, नहीं। यह उत्तर सुनकर गांधीजी ने पूछा, फिर राष्ट्र के पैरों में यह बेड़ी क्यों? हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है।